तीसरा सप्तक : कुँवर नारायण
ये पंक्तियाँ मेरे निकट ये पंक्तियाँ मेरे निकट आईं नहीं मैं ही गया उनके निकट उनको मनाने, ढीठ, उच्छृंखल अबाध्य इकाइयों को पास लाने : कुछ दूर उड़ते बादलों की बेसंवारी रेख, या खोते, निकलते, डूबते, तिरते गगन में पक्षियों की पांत लहराती : अमा से छलछलाती रूप-मदिरा देख सरिता की सतह पर नाचती लहरें, […]