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ग़ज़ल

नया इक शौक़ पैदा कर रहे हैं/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

नया इक शौक़ पैदा कर रहे हैं। बला का वो तमाशा कर रहे हैं।।   मुहब्बत में ख़सारा कर रहे हैं।। ख़ुशी में कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं।।   वही कल देखना मुंह मोड़ लेंगे। जिन्हें हम-तुम सितारा कर रहे हैं।।   बहुत बेचैन हैं सब दोस्त मेरे। भुलाने का इरादा कर रहे हैं।।   […]

इक नज़र डाले न कोई सरसरी भी/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

इक नज़र डाले न कोई सरसरी भी। बह्र से ख़ारिज़ हुई क्या ज़िंदगी भी।।   कोई सोचे कोई समझे कोई बूझे। कोई तो देखे हमारी बेबसी भी।।   याद अब मंज़र कोई रहता नहीं है। आंख से जाती रही है रोशनी भी।।   बज़्म में तूफान सा बरपा रही है। बोलती कितना है तेरी ख़ामुशी […]

ये बला कोई आसमानी है/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

ये बला कोई आसमानी है। ‘जिंदगी दर्द की कहानी है’।।   आप ख़ुद से अगर छिपाएं तो। आपको बात इक बतानी है।।   जिस्म इक दिन फ़ना हो जाएगा। रूह तो यार ज़ाविदानी है।।   बात करना ज़रा सलीके से। वो कमीना भी ख़ानदानी है।।   ये मुहब्बत से मार डालेगी। ये सियासत बड़ी सयानी […]

झूठों का संसार है बाबा/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

झूठों का संसार है बाबा। सच कितना लाचार है बाबा।।   इन्सां इन्सां से लड़ता है। ज़ेहन से बीमार है बाबा।।   घर-घर में सब दीप जलाएं। इससे कब इनकार है बाबा।।   द्रौपदी देखो फिर लुटती है। अंधों का दरबार है बाबा।।   धर्म बताकर नंगा नाचें। समझाना बेकार है बाबा।।   इश्क़-मुहब्बत तौबा-तौबा। […]

कितने बुझे बुझे हैं मनाज़िर बहार के/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

कितने बुझे बुझे हैं मनाज़िर बहार के पेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के शाख़ें हरी भरी हैं न फूलों पे तितलियां दो रोज़ के थे सारे नज़ारे बहार के बिखरे हुए हैं टूट के पत्ते यहां वहां नग़्में सुनायें क्या कोई ऐसे में प्यार के मांगे की रौशनी से उजाला है हर तरफ़ […]

रंग बदलते इन्सानों को देखा है/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

रंग बदलते इन्सानों को देखा है इस दुनिया में मतलब का हर रिश्ता है शह्र नहीं यह जंगल है और जंगल में सारे वक़्त कलेजा मुंह को आता है काला नाग जकड़ लेता है सूरज को उसकी जकड़न से वो कैसे उभरा है उसको पूजने वाले कैसे कैसे लोग वो जो वक़्त पे चलने वाला […]

फ़स्लें तमाम लूट के सैलाब ले गया/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

फ़स्लें तमाम लूट के सैलाब ले गया देकर अज़ाब जीने का असबाब ले गया उसको ख़बर नहीं कि वो शुह्रत के ज़ोम में आंखों से शह्रे-गिरिया के सब ख़्वाब ले गया हमको था नाख़ुदा पे भरोसा बहुत मगर कश्ती हमारी जानिबे-गिर्दाब ले गया इक जलपरी से इश्क़ का अंजाम ये हुआ बेताब दिल हमारा तहे-आब […]

चुन चुन कर हम नफ़रत की हर इक दीवार गिरायेंगे/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

चुन चुन कर हम नफ़रत की हर इक दीवार गिरायेंगे हमको ज़िद है, इस धरती को इक दिन स्वर्ग बनायेंगे ख़ंजर-वंजर, चाकू-वाकू, ख़ून-ख़राबा क्या जानें प्रेमनगर के वासी हैं हम प्रेम के नग़्में गायेंगे एक ज़माने से इक जोंक बदन से चिपकी चिपकी है आख़िर कब तक इसको यूं ही अपना ख़ून पिलायेंगे कबतक उसके […]

पहली पहली बार हमारे घर आंगन में उतरा चांद/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

पहली पहली बार हमारे घर आंगन में उतरा चांद रात गये तक जाग के हमने टुकड़ा टुकड़ा देखा चांद दिन भर की सारी थकन को पल भर में हम भूल गये घर आते ही दौड़ के लिपटा पापा…पापा कहता चांद दुख की रातें काट रही है बुढ़िया बैठी चरखे पर उसके आंसू बिखरे तारे दादी […]

जागी आंखों का सपना है बीबी बच्चा घर/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

जागी आंखों का सपना है बीबी बच्चा घर छोड़ के इक दिन सब जायेंगे रोता गाता घर जीता मरता कौन हमारे हर सपने के साथ सारे बच्चे देख रहे हैं अपना अपना घर वो क्या जानें जोड़ी गयी है कैसे इक इक ईंट बेटों को तो मिल जाता है बना बनाया घर बंटवारे का पहला […]

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