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ग़ज़ल

आपकी आँखें हमारी राहत ए जाँ हो गईं/ग़ज़ल/रचना निर्मल

आपकी आँखें हमारी राहत ए जाँ हो गईं इनसे मिलकर दिल की सब शमएँ फरोज़ाँ हो गईं  आपकी नज़रों ने जब हमको शरारत से छुआ दिल की दीवारें महब्बत से निगाराँ हो गईं  मुश्किलों के दौर में मुझमें छिपीं कुछ सीरतें मौक़ा पाते ही जमाने पर नुमायाँ हों गईं जब नहीं पाया महब्बत का महब्बत […]

जिसकी ख़ातिर हार बैठी है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

अपना सब कुछ जिसकी ख़ातिर हार बैठी है उसने क्या इक बार भी पूछा तू कैसी है  दिल परेशाँ है बहुत औ’र आँख भीगी है घर की रौनक़ जब से वीराने में बैठी है  आज भी अपने ही घर में नारी की हालत नौकरानी तो कभी गुलदान जैसी है रास्ता छोड़ा नहीं है मैंने हिम्मत […]

बुरा तो किसी को ये अच्छा लगा/ग़ज़ल/रचना निर्मल

बुरा तो किसी को ये अच्छा लगा घरौंदे में पत्थर जो सच का लगा  यहाँ इंतिज़ारी रही और वहाँ दिल उसका किसी और से जा लगा  सवालात हर सम्त उठने लगे मुझे सच का रस्ता जब अच्छा लगा शिकार उसके दिल का जो करना है तो तू तीर-ए-नज़र से निशाना लगा ख़ुदा की जिसे ज़ात […]

यूँ भी ख़ुद को आज़माते हम/ग़ज़ल/रचना निर्मल

शब ए फ़िराक़  यूँ भी ख़ुद को आज़माते हम न याद आपको करते न याद आते हम  शिकन न डालते माथे प मुस्कुराते हम वतीरा आपके दिल का समझ जो जाते हम नज़र मिला के महब्बत से गर वो करते बात बदल के वक़्त का हर दौर लौट आते हम  हमारे इश्क़ प उनको यक़ीन […]

हवाएँ उस तरफ़ तूफ़ान लाना चाहती हैं/ग़ज़ल/रचना निर्मल

हवाएँ उस तरफ़ तूफ़ान लाना चाहती हैं निगाहें जिस तरफ़ दुनिया बसाना चाहती हैं मिले ज़ख़्मों को हर सूरत भुलाना चाहती हैं ये आँखें लज़्ज़तें उल्फ़त की पाना चाहती हैं उस आँगन की बता दीवारों को अब क्या कहूँ मैं जो चोटें सह के भी रिश्ते निभाना चाहती हैं जो क़िस्मत के थपेड़ों ने किए […]

जिनकी आँखों में मैंने डर देखा/ग़ज़ल/रचना निर्मल

जिनकी आँखों में मैंने डर देखा ख़त्म उनका वहीं सफ़र देखा उसकी आँखों को तर ब तर देखा इश्क़ का जिस प भी असर देखा  वस्ल की बात उससे क्या होती जिसने हमको न इक नज़र देखा  अश्क कितना अगर मगर करते हर जगह आफ़तों का घर देखा उसके घर में लगा न अपना दिल […]

रूह अपनी न हुई जिस्म भी अपना न हुआ/ग़ज़ल/रचना निर्मल

रूह अपनी न हुई जिस्म भी अपना न हुआ काट दी उम्र जहाँ वो भी हमारा न हुआ  मिल गईं ख़ाक में सब आसमाँ उनका न हुआ जिन पतंगों का तेरे शह्र में जाना न हुआ घर का हर शख़्स मिलनसार था पर जाने क्यों बात जिससे मैं कहूँ मन की वो रिश्ता न हुआ […]

क़िस्से में रहती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

ख़यालों की बना कर डोर हर क़िस्से में रहती है तमन्ना हर घड़ी इस दिल को उकसाने में रहती है गुज़र कर हर घड़ी माज़ी के अफ़्साने में रहती है वो आप को हर वक़्त दुहराने में रहती है कहाँ उसको दिखाई देगा अपना चाक पैराहन जो बस हर वक़्त उलझी ज़ुल्फ़ें सुलझाने में रहती […]

वस्ल की बात जब भी आती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

वस्ल की बात जब भी आती है मोम सी वो पिघलती जाती है  रात दिन वो मुझे सताती है इश्क़ की आग में जलाती है  ऐ हवाओ तुम्हीं बता दो मुझे याद क्या उसको मेरी आती है  ज़िक्र करती है बार बार मेरा जब वो नग़मा कोई सुनाती है  ज़ह्न ओ दिल में उतर के […]

क़रीब दिल के रहें किस तरह वो याराने/ग़ज़ल/रचना निर्मल

क़रीब दिल के रहें किस तरह वो याराने जो बात बात प लगते हों हमको बेगाने  लुटा दी जान जिन्होंने वफ़ा की राहों में हुए ज़माने में मशहूर उनके अफ़साने  सराब कहते हैं ख़ुशियों को सिर्फ़ लोग वही गए कभी नहीं जिनके दिलों से वीराने कोई तो मुझको बताए कि ज़िक्र पर उसके मैं अपने […]