नया इक शौक़ पैदा कर रहे हैं/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली
नया इक शौक़ पैदा कर रहे हैं। बला का वो तमाशा कर रहे हैं।। मुहब्बत में ख़सारा कर रहे हैं।। ख़ुशी में कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं।। वही कल देखना मुंह मोड़ लेंगे। जिन्हें हम-तुम सितारा कर रहे हैं।। बहुत बेचैन हैं सब दोस्त मेरे। भुलाने का इरादा कर रहे हैं।। […]