उत्सव के दिन बहुत अकेले बैठे उत्सव/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
उत्सव के दिन बहुत अकेले बैठे उत्सव आँसू की झीलों में कैसे डूबे उत्सव सन्नाटे में बीती होली, दीवाली, छठ शहर गये हैं गाँवों के बेचारे उत्सव कैलेण्डर में टँगे-टँगे ही रहते हैं अब शहरों की भागादौड़ी में खोये उत्सव नकली मुस्कानों को ओढ़े फिरते चेहरे अवसादों की सीलन में हैं सीले उत्सव पोता-पोती घर […]