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काव्य-गीत-पद्य

छोड़ प्रलय के राग पुराने/राहुल द्विवेदी स्मित’

छोड़ प्रलय के राग पुराने, चलो सृजन के गान सुनायें। बैठ रात की इस चौखट पर, आओ गीत भोर के गायें।। किसने फूँकी सारी बस्ती, यह विचार का विषय नहीं है। कितने घर, दालान जल गये, चर्चाओं का समय नहीं है। इस विनाश के दामन में ही, नव निर्माण छुपा होता है विध्वंसों की राख […]

थोड़ा सा बतियालूं मैं/मयंक श्रीवास्तव

थोड़ा सा बतियालूं मैंं सोच रहा हूँ बहुत दिनों से थोड़ा सा हरषालूं मैं खुलकर अगर नहीं हंस पाया मन ही मन मुस्कालूं मैं। गूंगी सुबह रोज मिलती मैं मिलता बहरी रातों से लेकिन यह इच्छा समझौता करने की हालातों से जीवन के पथरीले पथ को थोड़ा सुगम बनालूं मैं। इस जीवन की दशा दिशा […]

नदी की धारा/मयंक श्रीवास्तव

नदी की धारा मेरे द्वार नदी की धारा जो इस बार बही इतनी बेसुर इतनी बेलय पहले नहीं रही। कोलाहल तो है कलरव वाला संगीत नहीं इतने बड़े सफर में कोई मन का मीत नहीं नर्तन करना और लहरना सब कुछ है सतही। बोल चाल बतियाने की उत्सुकता नहीं दिखी पहली बार नदी में मुझको […]

किरण तुम्हारा पता नहीं है/मयंक श्रीवास्तव

किरण तुम्हारा। पता नहीं है किस कारण से भूल गई हो तुम किरण तुम्हारा घर जाने का वक्त हो गया है देख रहा टकटकी लगाकर तुम्हें सतत कोई स्वर्णिम छवि की चमक देख अपनी सुधि बुधि खोई तुमको बिना लिए जाने को वह तैयार नहीं संध्या का सूरज तुम पर आसक्त हो गया है। हमें […]

मेरे लड़के के जीवन में/मयंक श्रीवास्तव

मेरे लड़के के जीवन में मेरे लड़के के जीवन में। आकर गाँव शहर का लड़का फिर भोपाल गया। मेरे लड़के के जीवन में आ भूचाल गया। मेरा लड़का जान गया क्या होती बिरियानी पीने से पहले शराब में मिलता है पानी वापस जाते समय मीन का स्वाद उछाल गया। ड्रग की पुड़िया से उसकी पहचान […]

विवादों का शहर/मयंक श्रीवास्तव

विवादों का शहर प्रश्न हल करता नहीं है यह विवादों का शहर। यह शहर अब नित तनावों का कहर ढाने लगा चैन घर का छीन कर बाजार हरषाने लगा यह हमारे तंत्र के लंगड़े इरादों का शहर। इस शहर का आदमी ही आदमी को बांटता वक्त मिलते ही कपट की कैंचियों से काटता हाँ कभी […]

थोड़ा सा रो लेती हूँ/छाया त्रिपाठी ओझा

थोड़ा सा रो लेती हूँ अन्तर्मन में सुस्मृतियों के बीज रोज बो लेती हूँ। याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ। प्रश्न कई जब उठकर दिल में , करने लगते खींचातानी ! गढ़ते नहीं भाव भी आकर फिर से कोई नयी कहानी ! नयनों में ले नीर सुनो तब, पीर सभी धो […]

कभी नहीं कुछ कहते आँसू/छाया त्रिपाठी ओझा

कभी नहीं कुछ कहते आँसू कभी नहीं कुछ कहते आँसू ! बस चुपके से बहते आँसू !! गिरतीं हों ज्यों जल की बूँदें, मौन वेदना आँखें मूँदें, बहती जाए अविरल धारा, पूछ पूछकर दिल भी हारा, नयनों तक से अपनी पीड़ा, व्यक्त नहीं है करते आँसू ! बस चुपके —————— सब जग के रिश्ते नातों […]

धरती अम्बर चाँद सितारे/छाया त्रिपाठी ओझा

धरती अम्बर चाँद सितारे धरती अम्बर चाँद सितारे ! खफा खफा लगते हैं सारे ! नहीं  बोलतीं  आज  हवाएँ चुप चुप सी हैं सभी दिशाएँ ! संदेशों की प्यारी पाती पढ़के अब हम किसे सुनाएँ गुमसुम हैं दिनकर भी प्यारे । खफा —————- दिवस लगे ज्यों सोया सोया नदियों झरनों का मन खोया ! इक […]

मैं प्रतीक्षारत रहूँगा/सुनील त्रिपाठी

मैं प्रतीक्षारत रहूँगा शेष उर में, श्वांस जब तक,या अखंडित आस जब तक मैं प्रतीक्षारत रहूँगा , मैं प्रतीक्षारत रहूँगा। हों न जाती पूर्ण जब तक, चिर प्रतीक्षित कामनाएं। या न मिलती सिद्धि जब तक,निष्फलित सब साधनाएं। तज न देता ताप जब तक, काम संयम से लिपटकर, या बिलों में घुस न जाती, फन उठाती […]