छोड़ प्रलय के राग पुराने/राहुल द्विवेदी स्मित’
छोड़ प्रलय के राग पुराने, चलो सृजन के गान सुनायें। बैठ रात की इस चौखट पर, आओ गीत भोर के गायें।। किसने फूँकी सारी बस्ती, यह विचार का विषय नहीं है। कितने घर, दालान जल गये, चर्चाओं का समय नहीं है। इस विनाश के दामन में ही, नव निर्माण छुपा होता है विध्वंसों की राख […]