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ग़ज़ल

बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा ख़रीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा बड़ा न छोटा कोई, फ़र्क़ बस नज़र का है सभी […]

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला, मेरे स्वागत को हर एक जेब से ख़ंजर निकला । तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला, प्यार का गाँव वो बारूद का दफ़्तर निकला । डूब कर जिसमे उबर पाया न मैं जीवन भर, एक आँसू का वो कतरा तो समंदर निकला । […]

खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, खिडकी खुली है ग़ालिबन उनके मकान की । हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो, आ जायेगी ज़मीन पे छत आसमान की । बुझ जाये सरे आम ही जैसे कोई चिराग़, कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की । ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की […]

जितना कम सामान रहेगा/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा उससे मिलना नामुमक़िन है जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा हाथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुक़सान रहेगा जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं मुश्क़िल में इन्सान रहेगा ‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा उसका गीत-विधान रहेगा

जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह, याद आएंगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह । ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा जाने शरमाए वो क्यों गांव की दुल्हन की तरह । कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो जिन्दगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह । दाग मुझमें […]

अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई । मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई । आप मत पूछिये क्या हम पे ‘सफ़र में गुज़री ? था लुटेरों का जहाँ गाँव वहीं रात हुई । ज़िंदगी भर तो हुई गुफ़्तुगू ग़ैरों से मगर आज तक हमसे हमारी न मुलाकात हुई । […]

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए […]

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा । सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा । वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में, हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा । तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में, वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर […]

जब गिला वो करें चुप रहा हम करें/ग़ज़ल/रचना निर्मल

जब गिला वो करें चुप रहा हम करें क़र्ज़ चाहत का ऐसे अदा हम करें वो करें बेवफ़ाई वफ़ा हम करें आप ही अब कहें और क्या हम करें कोई आ कर बता जाए इतना हमें कैसे  बेताब दिल की दवा हम करें चाहे दुनिया करे लाख ज़ुल्म-ओ-सितम दिल को दिल से न फिर भी […]

लगाता रोज़ मैं चहरा नया हूँ/ग़ज़ल/रचना निर्मल

लगाता रोज़ मैं चहरा नया हूँ तेरा ही ऐब हूँ तुझमें छिपा हूँ लड़ाई ख़ुद से ही लड़ता रहा हूँ बख़ूबी बात यह मैं जानता हूँ लगा है रोग सच्चाई का जब से दिखाती हर किसी को आइना हूँ जो बाँधे आपको ताउम्र मुझसे मुहब्बत का वही मैं दाइरा हूँँ जकड़ लेता है सबके ज़ह्न […]