परिणति/डॉ. शिप्रा मिश्रा
नदी अपना मार्ग स्वयं बनाती है कोई नहीं पुचकारता उछालता उसे कोई उसकी ठेस पर मरहम नहीं लगाता दुलारना तो दूर कोई आंख भर देखता भी नहीं तो क्या नदी रुक जाती है या हार मान लेती है कोई उसे मार्ग भी नहीं बताता चट्टानों से भिड़ना उसकी नियति है और उसे अपनी नियति या […]