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कविता

मैं पूछता हूँ/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से क्या वक़्त इसी का नाम है कि घटनाए कुचलती हुई चली जाए मस्त हाथी की तरह एक समूचे मनुष्य की चेतना को? कि हर सवाल केवल परिश्रम करते देह की गलती ही हो   क्यों सुना दिया जाता है हर बार पुराना लतीफा क्यों कहा जाता […]

मैं अब विदा लेता हूं/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं अब विदा लेता हूं मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूं मैंने एक कविता लिखनी चाही थी सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं   उस कविता में महकते हुए धनिए का जिक्र होना था ईख की सरसराहट का जिक्र होना था उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस और बाल्टी में दुहे दूध […]

कातिल/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

यह भी सिद्ध हो चुका है कि इंसानी शक्ल सिर्फ चमचे-जैसी ही नहीं होती बल्कि दोनों तलवारें पकड़े लाल आंखोंवाली कुछ मूर्तियां भी मोम की होती हैं जिन्हें हल्का-सा सेंक देकर भी कोई जैसे सांचे में चाहे ढाल सकता है   लेकिन गद्दारी की सजा तो सिर्फ एक ही होती है   मैं रोने वाला […]

हम लड़ेगे साथी/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए   हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर हम […]

शहीद भगत सिंह/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

पहला चिंतक था पंजाब का सामाजिक संरचना पर जिसने वैज्ञानिक नज़रिये से विचार किया था   पहला बौद्धि‍क जिसने सामाजिक विषमताओं की, पीड़ा की जड़ों तक पहचान की थी   पहला देशभक्‍त जिसके मन में समाज सुधार का ए‍क निश्चित दृष्टिकोण था   पहला महान पंजाबी था वह जिसने भावनाओं व बुद्धि के सामंजस्‍य के […]

तूफ़ानों ने कभी मात नहीं खायी/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हवा का रुख बदलने पर बहुत नाचे, बहुत उछले जिनके शामियाने डोल चुके थे उन्होंने ऐलान कर दिया कि पेड़ अब शान्त हो गये हैं कि अब तूफ़ानों का दम टूट चुका है –   जैसे कि जानते न हों ऐलानों का तूफ़ानों पर कोई असर नहीं होता जैसे कि जानते न हों तूफ़ानों की […]

बेदख़ली के लिए विनय-पत्र/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

(इन्दिरा गाँधी की मृत्यु तथा इसके पश्चात सिखों के कत्ले-आम पर एक प्रतिक्रिया)   मैंने उम्र भर उसके खि़ला़फ़ सोचा और लिखा है अगर उसके शोक में सारा ही देश शामिल है तो इस देश में से मेरा नाम काट दो   मैं ख़ूब जानता हूँ नीले सागरों तक फैले हुए इस खेतों, खदानों और […]

भारत/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

भारत – मेरे आदर का सबसे महान शब्द जहाँ कहीं भी प्रयुक्त किया जाये शेष सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं। इस शब्द का अभिप्राय खेतों के उन बेटों से है जो आज भी पेड़ों की परछाइयों से वक़्त मापते हैं। उनकी पेट के बिना, कोई समस्या नहीं और भूख लगने पर वे अपने अंग […]

सच/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

तुम्हारे मानने या न मानने से सच को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। इन दुखते अंगों पर सच ने एक उम्र भोगी है। और हर सच उम्र भोगने के बाद, युग में बदल जाता है, और यह युग अब खेतों और मिलों में ही नहीं, फ़ौजों की कतारों में विचर रहा है। कल जब यह युग […]

दो और दो तीन/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं प्रमाणित कर सकता हूँ – कि दो और दो तीन होते हैं। वर्तमान मिथिहास होता है। मनुष्य की शक्ल चमचे जैसी होती है। तुम जानते हो – कचहरियों, बस-अड्डों और पार्कों में सौ-सौ के नोट घूमते फिरते हैं। डायरियाँ लिखते, तस्वीरें खींचते और रिपोर्टें भरते हैं। ‘कानून रक्षा केन्द्र’ में बेटे को माँ पर […]