तूस की आग/भवानी प्रसाद मिश्र
तूस की आग जैसे फैलती जाती है लगभग बिना अनुमान दिये तूस की आग ऐसे उतर रहा है मेरे भीतर-भीतर कोई एक जलने और जलाने वाला तत्व जिसे मैंने अनुराग माना है क्योंकि इतना जो जाना है मैंने कि मेरे भीतर उतर नही सकता ऐसी अलक्ष्य गति से ऊष्मा देता हुआ धीरे-धीरे… समूचे मेरे अस्तित्व […]