उसके नाम/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’
मेरी महबूब, तुम्हें भी गिला होगा मुहब्बत पर मेरी ख़ातिर तुम्हारे बेक़ाबू चावों का क्या हुआ तुमने इच्छाओं को सुई से जो उकेरी थी रूमालों पर उन धूपों को क्या बना, उन छायाओं का क्या हुआ कवि होकर कैसे बिन पढ़े ही छोड़ जाता हूँ तेरे नयनों में लिखी हुई इक़रार की कविता तुम्हारे […]