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कविता

चक्रव्यूह : कुँवर नारायण

माध्यम वस्तु और वस्तु के बीच भाषा है जो हमें अलग करती है, मेरे और तुम्हारे बीच एक मौन है जो किसी अखंडता में हमको मिलाता है : एक दृष्टि है जो संसार से अलग असंख्य सपनों को झेलती है, एक असन्तुष्ट चेतना है जो आवेश में पागलों की तरह भाषा को वस्तु मान, तोड़-फोड़ […]

तीसरा सप्तक : कुँवर नारायण

ये पंक्तियाँ मेरे निकट ये पंक्तियाँ मेरे निकट आईं नहीं मैं ही गया उनके निकट उनको मनाने, ढीठ, उच्छृंखल अबाध्य इकाइयों को पास लाने : कुछ दूर उड़ते बादलों की बेसंवारी रेख, या खोते, निकलते, डूबते, तिरते गगन में पक्षियों की पांत लहराती : अमा से छलछलाती रूप-मदिरा देख सरिता की सतह पर नाचती लहरें, […]

मैं स्त्री हूँ /कविता/नन्दिता शर्मा माजी

मैं स्त्री हूँ, प्रायः घर की देवी भी कहलाती हूँ, कहीं प्रताड़ित, तो कहीं पूजी जाती हूँ, कहीं मेरा मान-सम्मान किया जाता है, कहीं मुझे कोख में ही मार दिया जाता है, कभी बड़े चाव से सोलह श्रृंगार करते है, कभी भरी सभा में मेरा वस्त्र भी हरते है, कभी वंश वृद्धि के लिए सिर […]

संहार शेष है/कविता/नन्दिता शर्मा माजी

कल्कि के धनुष की अभी, टंकार शेष है, कितनी ही सुताओं का, प्रतिकार शेष है, तीर, तलवारों से अभी श्रृंगार शेष है, शस्त्र उठा लो बेटियों, संहार शेष है, अंहकारियों के माथ का अहंकार शेष है, माँ, बहन, बेटियों की, हुंकार शेष है, निर्भया की अस्थियों में, अंगार शेष है, शस्त्र उठा लो बेटियों, संहार […]

आओ रानी/कविता/नागार्जुन

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की यही हुई है राय जवाहरलाल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! आओ शाही बैण्ड बजायें, आओ बन्दनवार सजायें, खुशियों में डूबे उतरायें, आओ तुमको सैर करायें– उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! तुम मुस्कान लुटाती आओ, […]

तीनों बन्दर बापू के/कविता/नागार्जुन

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के! सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के! सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के! ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के! जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के! लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के! सर्वोदय के नटवरलाल फैला दुनिया भर में जाल अभी […]

शासन की बंदूक/कविता/नागार्जुन

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की […]

मोर न होगा …उल्लू होंगे/कविता/नागार्जुन

ख़ूब तनी हो, ख़ूब अड़ी हो, ख़ूब लड़ी हो प्रजातंत्र को कौन पूछता, तुम्हीं बड़ी हो डर के मारे न्यायपालिका काँप गई है वो बेचारी अगली गति-विधि भाँप गई है देश बड़ा है, लोकतंत्र है सिक्का खोटा तुम्हीं बड़ी हो, संविधान है तुम से छोटा तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का, तुम्हीं बड़ी हो खूब […]

अकाल और उसके बाद/कविता/नागार्जुन

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त। दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद चमक उठी घर […]

कालिदास/कविता/नागार्जुन

कालिदास! सच-सच बतलाना इन्दुमती के मृत्युशोक से अज रोया या तुम रोये थे? कालिदास! सच-सच बतलाना! शिवजी की तीसरी आँख से निकली हुई महाज्वाला में घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम कामदेव जब भस्म हो गया रति का क्रंदन सुन आँसू से तुमने ही तो दृग धोये थे कालिदास! सच-सच बतलाना रति रोयी या तुम रोये थे? वर्षा […]

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