जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला, मेरे स्वागत को हर एक जेब से ख़ंजर निकला । तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला, प्यार का गाँव वो बारूद का दफ़्तर निकला । डूब कर जिसमे उबर पाया न मैं जीवन भर, एक आँसू का वो कतरा तो समंदर निकला । […]