हर बार/कविता/रवीन्द्र उपाध्याय
हर बार ठोकरों ने है सिखलाया संभलना मिली जूझने की ताक़त हर बार उपेक्षाओं से जब-तब निन्दाओं ने अधिक निखारा हमको धीरज का उपहार मिला है दुख के हाथों ! घने अँधेरे ने प्रकाश की ओर धकेला घोर उदासी में आशा की किरणें चमकीं पतझड़ से ही मधुऋतु का संकेत मिला है! जब भी हुआ […]