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ब्लॉग

ढकोसले/अमीर खुसरो

काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर सर में लगा खटाक से, वाह रे […]

पहेलियाँ/अमीर खुसरो

1. पहेलियाँ 1 तरवर से इक तिरिया उतरी उसने बहुत रिझाया बाप का उससे नाम जो पूछा आधा नाम बताया आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेली मोरी अमीर ख़ुसरो यूँ कहे अपना नाम न बोली (उत्तर=निम्बोली) 2 फ़ारसी बोली आईना, तुर्की सोच न पाईना हिन्दी बोलते आरसी, आए मुँह देखे जो उसे बताए (उत्तर=दर्पण) […]

मुकरियाँ/अमीर खुसरो

अति सुंदर जग चाहे जाको, मैं भी देख भुलानी वाको, देख रूप माया जो टोना । ऐ सखि साजन, ना सखि सोना ।। अति सुरंग है रंग रंगीलो है गुणवंत बहुत चटकीलो राम भजन बिन कभी न सोता ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता ।। अर्ध निशा वह आया भौन सुंदरता बरने कवि कौन […]

दोहे/अमीर खुसरो

अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई। जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।। अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस। जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।। आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ। न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ।। […]

ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल/कविता/अमीर खुसरो

ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां । कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान, न लेहो काहे लगाये छतियां । शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़ वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह, सखि पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां । यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं, किसे पडी है […]

काहे को ब्याहे बिदेस/कविता/अमीर खुसरो

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस भैया को दियो बाबुल महले दो-महले हमको दियो परदेस अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ जित हाँके हँक जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ […]

जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर/कविता/अमीर खुसरो

जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर । जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर । तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली […]

छाप तिलक सब छीनी रे/कविता/अमीर खुसरो

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके प्रेम भटी का मदवा पिलाइके मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके खुसरो निजाम के बल बल जाए […]

बहुत रही बाबुल घर दुल्हन/कविता/अमीर खुसरो

बहुत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई। बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई। न्हाय धोय के बस्तर पहिरे, सब ही सिंगार बनाई। बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई। चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत नाई। चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई। अन्त बिदा […]

बहुत कठिन है डगर पनघट की/कविता/अमीर खुसरो

बहुत कठिन है डगर पनघट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी मेरे अच्छे निज़ाम पिया। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी ज़रा बोलो निज़ाम पिया। पनिया भरन को मैं जो गई थी। दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी। बहुत कठिन है डगर पनघट की। खुसरो निज़ाम के बल-बल जाइए। लाज राखे मेरे घूँघट […]