यौवन के आकाश में, सुरधनुषी उल्लास। प्रणय-गंध ले बाँटती, मुट्ठी भर वातास।। मेहँदी वाले हाथ में,दिखा गुलाबी फूल। उसे मिलेगा फूल यह,जिस पर प्रभु अनुकूल।। मेहँदी रंजित हाथ हों, अधरों पर मुस्कान। मदमाते दो नयन हों,मौन निमंत्रण जान।। आँखें पत्थर-सी हुईं,प्रिय-दर्शन की आस। हाथ छोड़ मेहँदी करे,अब कुंतल में हास।। विरही मन धीरज धरो, करो न आर्त्त-पुकार। आएगी प्रिय उर्वशी,है यदि सच्चा प्यार।। चंचल चपला की चली,चम-चम-चम तलवार। चिहुँक चंद्रवदना जगी,इत-उत रही निहार।। गोरी ने मुख पर पड़े, झटकाए जब केश। लगा मेघ की ओट से,मुस्काया सोमेश।। रमणी करवा चौथ पर, कर सोलह श्रृंगार। बोली तुझ पर वार दूँ, सात जन्म का प्यार।। चंद्रमुखी को देख कर, कहे चंद्र यह बात। चंद्र चंद्र को अर्घ्य दे,बड़ी अनोखी रात।। मन पुलकित होने लगा, रिमझिम देख फुहार। साजन जी करने लगे,सजनी की मनुहार।।
दोहा/वसंत जमशेदपुरी
