अकेले हम जो ख़ुद को आज़माने के लिए निकले
इरादे भी हमारे साथ आने के लिए निकले
सुकून इतना था अंदर लग रहा था लाश हैं इक हम
तो थोड़ा आज बाहर छटपटाने के लिए निकले
नशे में आदमी थे जो उन्हें थी कब खबर इसकी
वो घर से बारहा बस लड़खड़ाने के लिए निकले
नहीं कुछ फ़ायदा नुक़सान अपना था कोई उनका
कि सूरज जब भी निकले इस ज़माने के लिए निकले
वही तैराक भी बेख़ौफ़ पहुँचे पार दरिया के
सदा मझधार में जो डूब जाने के लिए निकले
अकेले हम जो ख़ुद को आज़माने के लिए निकले/ग़ज़ल/अंजू केशव