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चलो तुम्हारी खुदाई को देख लेते हैं/गज़ल/डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी

वो अपने घर की भलाई को देख लेते हैं
 ग़लत -सही में भी भाई को देख लेते हैं

 वो लोग मेरी तरह ज़हर पी नहीं सकते
 पढ़े- लिखे हैं दवाई को देख लेते हैं

 तुम उसके पास जुबां खोलना तरीके से
 ये जानकर भी बड़ाई को देख लेते हैं

 बड़े गुरुर में रखा है तुमको शोहरत ने
 चलो तुम्हारी खुदाई को देख लेते हैं


 था उनका काम तो बारूद वो बिछा आये
 अब हम जला के सलाई को देख लेते हैं

 हमें जो फैसले करने हैं तय है पहले से
 मगर रविश है सफाई को देख लेते हैं

 मेरी नजर में कहां बा -लिबास हो तुम भी
 छुपा लो जितनी बुराई को देख लेते हैं

लेखक

  • डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी जन्म -10 जनवरी 1978, बेगूसराय, बिहार हिन्दी,शिक्षा शास्त्र,और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर,बीएड और पत्रकारिता,पीएच-डी हिन्दी, यू जी सी नेट हिन्दी. -खुले दरीचे की खुशबू, खुशबू छू कर आई है (हिन्दी ग़ज़ल )परवीन शाकिर की शायरी, गजल लेखन परंपरा और हिंदी ग़ज़ल का विकास, डॉ.भावना का गजल साहित्य चिंतन और दृष्टि(आलोचना)चांद हमारी मुट्ठी में है, आख़िर चांद चमकता क्यों है, मैं आपी से नहीं बोलती (बाल कविता )आदि पुस्तकें प्रकाशित, हिंदी, उर्दू और मैथिली की तमाम राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में नियमित लेखन आकाशवाणी और दूरदर्शन से लगातार प्रसारण विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा सौ से अधिक पुरस्कार तथा सम्मान. वृत्ति -अध्यापन पत्राचार -ग्राम /पोस्ट -माफ़ी, वाया -अस्थावां, ज़िला-नालंदा, बिहार 803107, मोबाइल 9934847941,620525425 zeaurrahmanjafri786@gmail.com

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