अपनी है जो परिभाषा वो आप हैं बाबूजी,
परिवार की परिसीमा परिमाप हैं बाबूजी।
श्रृंगार हैं माई का , माई की जो साड़ी है,
उसपर वो जो कुमकुम है, वो छाप हैं बाबूजी।
होकर मैं शुरू उनसे, होता भी उन्हीं तक हूँ,
दुनिया हैं मेरी, मेरे माँ- बाप हैं बाबूजी।
मैं लाख छुपाऊँ पर हर बात समझ लेते,
हर बात समझकर भी , चुपचाप हैं बाबूजी।
संगीत भरा जीवन जिससे है बना मेरा ,
उस गीत के पहले के आलाप हैं बाबूजी।
लेखक
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संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696
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