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न वक़्त का कोई दबाव दिखता/गज़ल/संजीव प्रभाकर

कुछेक दिन हम ये काम करते,उसी की महफ़िल में शाम करते,

सुना है मैंने कि चाँद तारे वहाँ पर आकर क़याम करते।

जहाँ से भटके वहीं था रस्ता , जहाँ से लौटे वहीं थी मंज़िल,

तमाम उम्रें गयीं हमारी पता, ठिकाना, मुकाम करते।

न और कुछ, वो सुकून देता इसीलिए हैं लगी  कतारें,

बड़े-बड़े उस फकीर के दर पर आके झुकते,सलाम करते।

न कोई उसने किया इशारा न लफ्ज़ इक भी कहा किसी को,

नज़र नज़र में कहा जो उसने खड़े वहाँ पर तमाम करते।

न वक़्त का कोई दबाव दिखता, न कोई दिखता तनाव उन पर,

मुझे यक़ीं है ज़रूर कोई वो ख़ास मक़्सद से काम करते।

लेखक

  • संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696

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