मुझे और कोई नहीं है डर, तुझे हो यक़ीं न हो यक़ीं,
मैं जो चुप हूँ तो तुझे सोचकर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं ।
तू ने जिस जगह पे कहा मुझे, “न तू याद कर न तू याद आ”,
मैं खड़ा रहा वहीं उम्रभर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तू ख़याल में कहीं और था, तुझे रोकता भी तो किस तरह,
मेरी चीख भी रही बे-असर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं ।
यूँ तो दरमियान तेरे मेरे, न थे ताल्लुकात बचे मगर ,
तेरी रख रहा था मैं हर ख़बर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तेरे बाद क्या क्या नहीं हुआ, जो न चाहिए था वो सब हुआ,
मिली ठोकरें मुझे दर-ब -दर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
वहाँ और कुछ न रहा है अब, वहाँ सिर्फ एक मकान है,
वो जो घर था अब न रहा वो घर , तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।
तेरा रास्ता मेरा रास्ता, हुआ जिस जगह था अलग-अलग,
मैं अभी भी हूँ उसी मोड़ पर, तुझे हो यक़ीं कि न हो यक़ीं।