डियर राबर्ट,
सुना है तुम कामन्स की बैठक में बंगाल के अकाल की जाँच की माँग करने वाले हो। सोफी के पास आये हुए पत्र से यह भी मालूम हुआ कि तुम्हारा विचार है कि अकाल की घटनाओं से भारत में असन्तोष फैलने की सम्भावना है और तुम्हें सन्देह है कि कहीं उससे युद्ध-प्रयत्नों में बाधा न पड़े।
तुम्हारे इस सन्देह से केवल यही मालूम होता है कि तुम भारत की असली हालत से कितने अपरिचित हो। तुम्हें शायद यह नहीं मालूम कि हिन्दोस्तान की युगयुगों की सभ्यता और संस्कृति ने यहाँ वालों को इतना सहनशील बना दिया है कि तुम इसका अन्दाजा भी नहीं कर सकते । हिन्दोस्तानियों के धर्म में उपवास रखना और भूखों मरना एक साधना है, आध्यात्मिक निष्ठा है। इस बंगाल के उपवास से भारत की आत्मा पवित्र हो रही है, समझे। हिन्दोस्तानी अपमान और बेइज्जती की ठोकरें खाकर बहादुरी से शहादत की मौत मर जाते हैं; उनके लिए गेहूँ और रोटी का कोई सवाल ही नहीं उठता ।
फिर भी, तुम्हारी दिलचस्पी के लिए मैं एक भूख की मौत का हाल लिखता हूँ, वह मौत जो तुम्हारी समझ में यहाँ गदर मचा देती, लेकिन जो खुद हिन्दोस्तानियों की निगाह में एक पानी के बुलबुले से अधिक महत्त्व नहीं रखती ।
जाड़े के दिन थे – सुबह का वक्त । यकायक मेरा कुत्ता बुरी तरह भूकने लगा । मैंने ओवरकोट डाला और मैं बाहर आया। दूर पर बिजली की मद्धिम रोशनी में कुछ भिखमंगे चले आ रहे थे। सबसे आगे एक छोटा-सा लड़का था, करीब ग्यारह वर्ष का और, तुम्हें यकीन न होगा, वह जंगली बिल्कुल नंगा था। रूखे-रूखे बाल, पीला चेहरा, बुरी तरह फूला हुआ पेट और लकड़ी की तरह पतली टाँगें । उसके पीछे दो बुड़े थे। एक की लम्बी दाढ़ी में कीचड़ लगा हुआ था और दूसरे का एक पैर किसी बीमारी से फूल गया था। उनके पीछे तीन औरतें थीं, जिनके लिबास का हाल लिखना अश्लीलता होगी। उसमें से एक अभी कम उम्र की लड़की थी। एक तरफ उसके बालों ने और दूसरी तरफ उसके बच्चे ने उसकी छातियाँ ढक रक्खी थीं। यह हिन्दोस्तानी औरतों के पहिनाव का तरीका है, जिसकी इतनी तारीफ तुम कर रहे थे, जब तुमने पेरिस में जूली को सारी पहिने देखा था। और जानते हो उसकी यह हालत क्यों थी ? इसलिए नहीं कि उसको कपड़े नहीं मिल सकते थे, बल्कि इसलिए कि इस तौर से नंगे रहने पर उसे शायद आसानी से भीख मिल सकती थी। सबसे पीछे एक जवान आदमी था, जो धीमे-धीमे कराह रहा था, और दोनों हाथों से अपने पेट को दबाये था। शायद वह ज्यादा खा गया था, क्योंकि तुम्हें यह नहीं मालूम कि हिन्दोस्तानी भिखमंगे कितने लालची होते हैं।
मेरे घर के आगे हिन्दोस्तानी मुसलमानों की एक कब्रगाह है। पहले मैंने सोचा शायद कयामत का दिन आ गया है और कब्रों के पत्थरों को तोड़कर ये मुरदे न्याय के लिए जा रहे हैं, क्योंकि तुम उनकी शक्लों से जिन्दगी का कोई भी चिन्ह नहीं पा सकते थे। लेकिन उसी समय एक ऐसा वाकया हुआ कि मुझे विश्वास हो गया कि वे जिन्दा हैं। मैं अपनी नन्ही बेबी के लिए चाकलेट लाया था और उस पर लिपटा हुआ कागज राह में पड़ा था। आगे वाला नंगा लड़का अपनी पतली-पतली टाँगों पर झुका और लपककर वह टुकड़ा उठा लिया। पलभर उसे अजीब भूखी निगाहों से देखा और बड़े चाव से चाटा। और फिर चारों ओर निगाह घुमाकर झटसे उसे निगल गया। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ- हिन्दोस्तानी कागज भी खाते हैं। शायद करेन्सी नोट भी खा जाते होंगे। पर आजकल तो यहाँ कागज पर भी नियन्त्रण है ।
खैर, तो वे इतने धीरे-धीरे चल रहे थे कि एक बिजली के खम्भे से दूसरे तक आने में उन्हें कम-से-कम बीस मिनट लगे होंगे। शायद वे सचमुच भूखे और कमजोर थे ।
वह जवान भिखमंगा मेरे सामने रुका, शायद कुछ माँगने के इरादे से। तुम नहीं जानते कि मुझे इन भिखमंगों से कितनी नफरत है। मैंने फौरन अपने कुत्ते को इशारा किया और वह झपटा। भिखमंगा भागा और लड़खड़ा कर गिर गया । कुत्ते ने अपने दाँत गड़ाये लेकिन मैंने उसे वापस बुला लिया- मेरा कुत्ता बहुत समझदार है – वह हिन्दोस्तानी नस्ल का है और नेटिव कुत्ते बहुत ही वफादार होते हैं। मैंने भी उसे खिला-खिलाकर इतना मोटा कर दिया है जैसे कोई हिन्दोस्तानी सेठ या पुलिस का दारोगा जिनकी तस्वीरें तुमने ‘किपलिंग’ की किताबों में देखी होंगी।
वह आदमी जोर-जोर से कराह रहा था। ठण्ड से उसका बदन जकड़ गया था और वह उठने की बेकार कोशिश कर रहा था। उसके साथी पल भर रुके, उन्होंने एक खूनी निगाह से उसकी ओर देखा, अजीब तौर से सर झटका और रेंगते हुए आगे चले गये, उसे मरता हुआ छोड़ कर । यह उनके लिए साधारण-सी बात हो गयी थी ।
वह लड़की रुकी। उसने अपने बच्चे को जमीन पर रख दिया। मुझे उस पर तरस आ रहा था और शायद मैं उसकी कुछ मदद भी करता अगर मैं एक अंग्रेज न होता क्योंकि एक अंग्रेज के लिए हिन्दोस्तानियों की मदद करना अपमानजनक समझा जाता है। मुझे विक्टोरिया कालेज में हिन्दोस्तानी विद्यार्थियों के सामने सौन्दर्य का देश – भारत विषय पर भाषण देना था; मैं उसकी तैयारी करने लगा ।
शाम को जब मैं वापस आया, तो देखा वह आदमी चुपचाप पड़ा है। वह औरत कहीं चली गई थी। आधे घंटे में वह लौटी। उसकी गोद में बच्चा था और एक हाथ में एक सड़ी रोटी का टुकड़ा, और केले के छिलके । वह पास आयी और उस आदमी से कुछ कहा। उसने कुछ जवाब न दिया। पास में नाली धोने का नल था ! उस लड़की ने अपना पल्ला भिगोया और उसके मुँह में दो बूँदें निचोड़ीं- पल भर रुकी और फिर वह रोटी का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया। फिर भी आदमी कुछ न बोला, न हिला – डोला । उस औरत ने अपना सूखा हाथ उस आदमी की पसलियों पर रक्खा – उसके बाद उठी – पल भर चुप रही और उसके बाद सूखे गले से सुबकने लगी। वह आदमी मर चुका था।
औरत ने बच्चे की बाँह पकड़ी और रेंगते हुए सड़क के दूसरे किनारे पर सर थामकर बैठ गयी। जैसे उसने कोलतार से बनी हुई उस पतली सड़क को जिन्दगी और -मौत की विभाजन रेखा समझ लिया हो ।
वह आदमी निश्चेष्ट पड़ा था। उसके अधखुले मुँह पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं और मुँह में से आधी रोटी झूल रही थी। वह ऐसा मालूम पड़ता था जैसे सर चार्ल्स नेपियर का बयान किया हुआ हिन्दोस्तानी बाजीगर जो अपने मुँह से अजीब-अजीब चीजें निकाल देता है।
अँधेरा छा गया, वह औरत वहीं बैठी रही। रात को ऐसा मालूम हुआ कि टामी ठण्ड से कूँ-कूँ कर रहा है। रोजी ने उसे अपने बिस्तरे पर बुला लिया। पर वह आवाज न बन्द हुई। मैंने खिड़की खोलकर बाहर झाँका – गजब की सर्दी थी, हिन्दोस्तान उतना गर्म मुल्क नहीं जितना तुम समझते हो। यहाँ काफी सर्दी पड़ती है जिसका असर तुम हिन्दोस्तानियों की सर्ददिली में देख सकते हो ।
वह औरत सड़क के उस किनारे से इस किनारे पर आ गयी थी। पता नहीं किस ताकत के सहारे उसने जिन्दगी और मौत के बीच की उस सड़क को पार कर लिया था, वह भी इस भूख और सर्दी में। उसका बच्चा भूख और सर्दी से कुनमुना रहा था । मेरी नींद उचट गयी थी। मैंने देखा, वह औरत उठी, उस मुरदे के पास गयी और उसके मुँह से निकला हुआ रोटी का सड़ा टुकड़ा उस बच्चे के हाथ में दे दिया। बच्चा उसे खाने लगा, वह उसके मुरदा बाप की देन थी- वह रोटी का सड़ा टुकड़ा, मुरदे के मुँह से निकला हुआ । यकीन मानो राबर्ट ।
बच्चे ने फिर चीखना शुरू किया। औरत फिर उठकर मुरदे के पास गयी। उस पर से उसका वस्त्र जो एक फटा हुआ बोरा था, उठा लिया। मुरदा वस्त्रहीन हो गया, पर फिर औरत झिझकी और काँपी और टाट उसी पर डाल दिया। बच्चा काँप रहा था और पसलियों में सर्दी से जमे हुए कफ की घरघराहट साफ-साफ सुनायी पड़ती थी। वह मुरदे की बगल में बैठ गयी और आधा टाट अपनी ओर खींच लिया। उसके नीचे बच्चे को ढाँककर दुबका दिया और बगल में खुद लेट गयी। एक ओर मुरदा, बीच में बच्चा, और दूसरी ओर माँ – यह एक बंगाली परिवार था ।
मुझे नींद आ रही थी । मैं सो गया। सुबह लाश उठाने की गाड़ी आयी। मुरदा भरते वक्त मालूम हुआ बच्चा दो लाशों के बीच में था। माँ भी फिर सो कर उठी नहीं । उन्होंने माँ की लाश और बच्चे को बीच सड़क में छोड़ दिया। गाड़ी में जगह नहीं थी । शायद मुरदों ने, बिना सरकार की असुविधा का ध्यान रक्खे, ज्यादा से ज्यादा संख्या में श्मशान – यात्रा का निश्चय कर लिया था ।
मैंने तुम्हें बताया है कि मेरे घर के आगे एक कब्रिस्तान है । और उस कब्रिस्तान के सामने एक सिख रेजीमेण्ट का पड़ाव । कभी-कभी तो चाँदनी में सफेद कब्रों और सफेद तम्बुओं में फर्क ढूँढ़ना मुश्किल हो जाता है। खैर, गेहूँ और रसद की एक लारी उस ओर जा रही थी। सड़क पर लाश पड़ी हुई थी। लारी रुक गयी, फौजी उतरे और बन्दूक के कुन्दों से लाश को एक ओर हटा दिया। लारी चल दी। पर वह बेचारा बच्चा लारी के पिछले पहियों के नीचे आ गया-पच्च – एक दर्दनाक सी आवाज हुई- एक खून का फव्वारा छूटा और एक बड़ा-सा धब्बा वहाँ फैल गया। उस बच्चे की अंतड़ियाँ टायरों में फँसी रह गयीं और दूर तक लहू की लाल रेखा खिंच गयी ।
पीछे से कुछ आहट हुई। मैंने मुड़कर देखा। रोजी गुस्से से तमतमाई हुई खड़ी है । वह चीखकर बोली- “लारी रुकवाओ ? मैने उसे आहिस्ते से समझा दिया कि इसमें ड्राइवर का क्या कुसूर । बच्चे को दबने से पहले चीखना चाहिए था । दबने के बाद चीखना बच्चे की नासमझी थी रोजी भी कभी-कभी तुम्हारी तरह भावुक हो जाती है।
यह एक अदना सा वाकया है। तुम ख्याल कर रहे होगे इससे बड़ी नाराजगी फैली होगी – जाँच – कमीशन बैठा होगा- आन्दोलन मचा होगा।
यह सब कुछ नहीं मेरे दोस्त ! सामने रहने वाली बंगाली लड़कियाँ उसी खुशी और सजधज से कालिज गयीं, बगल के सेठ जी का रेडियो उतनी ही सुरीली आवाज में हापुड़, मेरठ और दिल्ली के गेहूँ के भाव बतलाता रहा – किसी पर कुछ भी असर न हुआ। सिर्फ उस गुलाम धरती पर खून की रेखा खिंच गयी और उसे भी मुसाफिरों के जूतों की रगड़ ने मिटा दिया।
यह यहाँ की हालत है । तुम्हारा विचार बिलकुल ही गलत है। उम्मीद है तुम अपनी भावुकता को छोड़ दोगे और कामन्स में फिजूल के सवाल न पूछोगे । क्योंकि उनसे हिन्दुस्तानियों में तो नहीं, सम्भव है अँग्रेजों में ही कुछ असन्तोष फैले; और यह युद्ध-प्रयत्नों में बाधक हो ।