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तट पर मोती मिल जायें/दिलजीत सिंह रील

जिसका जीना मरना क्या ।
उसकी बातें करना क्या।।

मान नहीं सम्मान नहीं ।
पांव वहां पर धरना क्या ।।

यदि दर्पण देख सका ना।
सजना और संवरना क्या।।

तट पर मोती मिल जायें ।
सागर बीच उतरना क्या।।

जग में जय जय कार हुई ।
ताप किसी का हरना क्या।।

कर्मों का फल मिलता है।
ठण्डी आंहें भरना क्या ।।

छोड़ खुदा को जाने-मन ।
और किसी से डरना क्या।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

तट पर मोती मिल जायें/दिलजीत सिंह रील

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