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दर्द बिछाया ग़म को ओढ़ा भूख रखी सिरहाने/दिलजीत सिंह रील

दर्द बिछाया ग़म को ओढ़ा भूख रखी सिरहाने ।
खुशहाली के सपने देखें हम भी क्या दीवाने ।।

हम गरीबों की अब इज्जत कहां रही इस दुनियां में।
हमको सभी बराबर लगते मंदिर हों या थाने।।

वही अकेला नहीं है मुजरिम दुनियां की भीड़ में ।
हर शख्स यहां पर मुजरिम है जाने या अनजाने ।।

ये सत्संगी वो सतरंगी वो बदरंगी शतरंजी है ।
मरवा डालेंगे पैदल को घोड़ा ऊंट बचाने ।।

मस्त कलंदर कोई सिकन्दर कोई बवंडर है।
जनता की बोटी बोटी नोचें कातिल बड़े पुराने।।

इनको देखा उनको देखा देखे कितने सारे।
सबकी वही कहानी सबके मिले जुले अफसाने।।

किसी शाह की राह चले हम ऐसी चाह नहीं है।
भारत माता के सपनो के हम हैं रंग सुहाने ।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

दर्द बिछाया ग़म को ओढ़ा भूख रखी सिरहाने/दिलजीत सिंह रील

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