वृक्ष कहें कुछ आपसे, हमें न कांटों व्यर्थ ।
वरना होगा एक दिन, सच में बड़ा अनर्थ ।।-1
कायनात छोटी लगे, ऐसा अपना प्यार ।
मुठ्ठी भर आकाश है, दो डग है संसार ।।-2
जग संदेशा दे रही, कोयल की हर कूक ।
सबसे मिलिए प्रेम से, करिऐ नेक सुलूक ।।-3
आँसू पीकर जी रहा,इस युग का इंसान ।
बरसों से देखी नहीं, चहरे पर मुस्कान ।।-4
परम्परा घायल हुईं, खुशियाँ हुईं यतीम ।
ज़हनों में जबसे घुली, नफरत वाली नीम ।।-5
सुख बोला इंसान से, यह मेरा दस्तूर ।
झूठ कपट छल से सदा, रखना मुझको दूर ।।-6
कंगन की आवाज से, हृदय करें संतोष ।
आसपास रजनी रहें, रिदम करे ये घोष ।।-7
वृक्षों को हम मान लें, माता-पिता समान ।
इनके ही आशीष से, मिलता जीवन दान ।।-8
पूंछा पेड़ पहाड़ से, कायनात भी मौन ।
माँ के जैसा दूसरा, इस धरती पर कौन ।।-9
अपने दुख की बात को, देना नहीं ज़ुबान ।
सुनकर तेरे मित्र भी, बन जाएं अन्जान ।।-10
खेत बटे आँगन बटे,बटी पेड़ की छाँव ।
भाई भाई जब लड़े, रोया सारा गाँव ।।-11
जीवन की शब्दावली,कर इतनी आसान ।
जिसको तेरे बाद भी, पढ़ें सभी इंसान ।।-12
बृंदावन राय सरल