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वृक्ष कहें कुछ आपसे/बृंदावन राय सरल

वृक्ष कहें कुछ आपसे, हमें न कांटों व्यर्थ ।

वरना होगा एक दिन, सच में बड़ा अनर्थ ।।-1

कायनात छोटी लगे, ऐसा  अपना  प्यार ।

मुठ्ठी भर आकाश है, दो  डग  है  संसार ।।-2

जग संदेशा दे रही, कोयल की  हर  कूक ।

सबसे मिलिए प्रेम से, करिऐ नेक  सुलूक ।।-3

आँसू पीकर जी रहा,इस युग का इंसान ।

बरसों से देखी नहीं, चहरे  पर  मुस्कान ।।-4

परम्परा घायल हुईं,  खुशियाँ  हुईं  यतीम ।

ज़हनों में जबसे घुली, नफरत वाली नीम ।।-5

सुख  बोला  इंसान  से,    यह  मेरा  दस्तूर ।

झूठ कपट छल से सदा, रखना मुझको दूर ।।-6

कंगन की आवाज से, हृदय करें संतोष ।

आसपास रजनी रहें, रिदम करे ये घोष ।।-7

वृक्षों को हम मान लें, माता-पिता  समान ।

इनके ही आशीष से, मिलता जीवन दान ।।-8

पूंछा पेड़ पहाड़ से, कायनात  भी  मौन ।

माँ के जैसा दूसरा, इस धरती पर कौन ।।-9

अपने दुख की बात को, देना नहीं ज़ुबान ।

सुनकर तेरे मित्र भी, बन  जाएं  अन्जान ।।-10

खेत बटे आँगन बटे,बटी‌ पेड़ की छाँव ।

भाई भाई जब लड़े, रोया  सारा  गाँव ।।-11

जीवन की शब्दावली,कर इतनी आसान ।

जिसको तेरे बाद भी, पढ़ें  सभी  इंसान ।।-12

बृंदावन राय सरल

लेखक

  • बृंदावन राय सरल माता- स्व. श्रीमती फूलबाई राय पिता- स्व. बालचन्द राय जन्मतिथि- 03 जून 1951 जन्म स्थान- खुरई, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा- साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न, सिविल इंजीनियर । भाषा - हिंदी, बुंदेली, उर्दू । प्रकाशन- हिंदी व बुंदेली भाषा में 14 किताबें प्रकाशित । साझा संकलन- लगभग 225 संकलनों में रचनाएं सम्मलित के अलावा देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन ।

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