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सागर   में    सहरा    दिखे/विज्ञान व्रत

ज्यों   पानी   पर  आग  हो , छाँव  पहन  ले  धूप।

सागर   में    सहरा    दिखे ,  ऐसा    तेरा     रूप।।1

नोचें   भी   यदि  फूल  को ,  देता    है     मकरन्द।

बहे  क्रौञ्च   की   पीर  से ,  आदि अनुषटुप छन्द।।2

मैं    तो    पूरे    दृश्य   का , समझा  यह   निहितार्थ।

युद्ध  किया  था  कृष्ण   ने , लड़ता    दीखा    पार्थ।।3

अलग  –  अलग    हैं    मोर्चे , अलग – अलग  हैं   युद्ध।

कृष्ण  लड़े  जिस  युद्ध  को , लड़   पाता    क्या   बुद्ध।।4

मैं   ख़ुद  में   रहता  नहीं , मुझमें   रहते   लोग।

ख़ुद को  मैं  अपने  लिये , करता  नहीं  प्रयोग।।5

मैं   ख़ुद  को  समझा  नहीं , कैसा   ये   दुर्योग।

मैं   क्या   हूँ  अक्सर  मुझे , बतलाते  हैं  लोग।।6

मनसा – वाचा – कर्मणा  ,  हम  यदि  हैं  शालीन।

इसका मतलब  ये  नहीं ,  हमको  समझो   दीन।।7

वो   पैमाना   ही    नहीं , नाप  सके जो  व्यास।

एक  छोर  आसक्ति  हूँ ,  एक    छोर   संन्यास।।8

अंगारों     से       दोस्ती ,  सागर   मेरा    गेह।

मुझसे  आकर  वो  मिले , होना  जिसे  विदेह।।9

दिल  में  इक   तूफ़ान  है , लेकिन    बंद   ज़बान।

तरकश   में   हैं  तीर  पर ,  टुटी     हुई     कमान।।10

फ़तह     किये     हैं     मोर्चे,  जीते  युद्ध   अनन्त।

ख़ुद  से  युद्ध  न  कर  सका ,  मैं   जीवन   पर्यन्त।।11

मैंने   ख़ुद   को   बो  दिया ,  जो  भी  काटे  फ़स्ल।

रक्खे   मुझे    सहेज   कर ,  आने    वाली   नस्ल।।12

विज्ञान व्रत

लेखक

  • विज्ञान व्रत जन्म-तिथि : 17 अगस्त 1943 जन्म-स्थान : तेड़ा (मेरठ) उ प्र शिक्षा : M A ललित कला , B Ed , डिप्लोमा -- चित्रकला (राजस्थान) सम्प्रति : लेखन तथा चित्रकला प्रकाशित कृतियाँ : ग़ज़ल संग्रह : बाहर धूप खड़ी है , चुप की आवाज़ , जैसे कोई लौटेगा , तब तक हूँ , मैं जहाँ हूँ , शर्मिन्दा पैमाने थे , किसका चेहरा पहना है , भूल बैठा हूँ जिसे , मेरा चेहरा वापस दो , याद आना चाहता हूँ , लेकिन ग़ायब रौशनदान , मेरे वापस आने तक , रौशनी है आपसे और विज्ञान व्रत : चुने हुए शे'र दोहा संग्रह : खिड़की भर आकाश

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