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इश्क़ में सौदा नहीं किया/मो. शकील अख़्तर

फिर क़हक़हा उठा है उसी गुलसितान से
इक बद नसीब जाएगा फिर अपनी जान से

मैं तेरी ज़िन्दगी में उस दाग़ की तरह
हटता नहीं जो ज़िन्दगी के दरमियान से

रिश्ता है मेरा मुझ से क्या मुझ को ख़बर नहीं
पूछूंगा अपनी ज़ात के हर तरजुमान से

मैं ने वफ़ा का इश्क़ में सौदा नहीं किया
अहले वफ़ा तो उठ गए वैसे जहान से

मिलते हैं ख़ाक में जो, मेरे हौसले नहीं
कम्बख़्त वो हैं आंसुओं के ख़ानदान से

नाकामियों से और बढ़ी हौसलों की ताब
गुज़रा हूं जब कभी मैं किसी इम्तिहान से

वो इश्क़ क्या जो दे नहीं रुसवाईयों का दर्द
वो हुस्न क्या जो फिर नहीं सकता ज़बान से

परवाज़े रूह तक ही मरासिम की क़ैद है
फिर वास्ता क्या जिस्म के ख़ाली मकान से

माथे पे दर्ज कर के मेरे ऐन शीन क़ाफ़
अख़्तर मेरा जनाज़ा उठा  लेना  शान  से

मो. शकील अख़्तर

लेखक

  • संक्षिप्त परिचय नाम : मो. शकील अख़्तर तख़ल्लुस :अख़्तर जन्म : 04.02.1955 पता: उर्दू बाज़ार ,दरभंगा           बिहार 846004 कार्य :  सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक रचना: विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में                 प्रकाशित            दो साझा ग़ज़ल संग्रहों में प्रकाशित  कई ग़ज़लें           एक ग़ज़ल संग्रह " एहसास की ख़ुशबू" नाम से,            जिज्ञासा प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित

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