बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज
बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा ख़रीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा बड़ा न छोटा कोई, फ़र्क़ बस नज़र का है सभी […]