वस्ल की बात जब भी आती है मोम सी वो पिघलती जाती है रात दिन वो मुझे सताती है इश्क़ की आग में जलाती है ऐ हवाओ तुम्हीं बता दो मुझे याद क्या उसको मेरी आती है ज़िक्र करती है बार बार मेरा जब वो नग़मा कोई सुनाती है ज़ह्न ओ दिल में उतर के इश्क़ की आग रौशनी बनके झिलमिलाती है
शौक़ बहकाते हैं मुझे जब भी जाँ तड़पती है तिलमिलाती है
लेखक
-
रचना निर्मल जन्मतिथि - 05 अगस्त 1969 जन्म स्थान - पंजाब (जालंधर) शिक्षा - स्नातकोत्तर प्रकाशन- 5 साझा संग्रह उल्लेखनीय सम्मान/पुरस्कार महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार संप्रति - प्रवक्ता ( राजनीति विज्ञान) संपर्क - 202/A 3rd floor Arjun Nagar
View all posts
वस्ल की बात जब भी आती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल