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वस्ल की बात जब भी आती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

वस्ल की बात जब भी आती है 
मोम सी वो पिघलती जाती है 

रात दिन वो मुझे सताती है 
इश्क़ की आग में जलाती है 

ऐ हवाओ तुम्हीं बता दो मुझे 
याद क्या उसको मेरी आती है 

ज़िक्र करती है बार बार मेरा
जब वो नग़मा कोई सुनाती है 

ज़ह्न ओ दिल में उतर के इश्क़ की आग 
रौशनी बनके झिलमिलाती है

शौक़ बहकाते हैं मुझे जब भी
जाँ तड़पती है तिलमिलाती है

लेखक

  • रचना निर्मल जन्मतिथि - 05 अगस्त 1969 जन्म स्थान - पंजाब (जालंधर) शिक्षा - स्नातकोत्तर प्रकाशन- 5 साझा संग्रह उल्लेखनीय सम्मान/पुरस्कार महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार संप्रति - प्रवक्ता ( राजनीति विज्ञान) संपर्क - 202/A 3rd floor Arjun Nagar

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वस्ल की बात जब भी आती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

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