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आपकी आँखें हमारी राहत ए जाँ हो गईं/ग़ज़ल/रचना निर्मल

आपकी आँखें हमारी राहत ए जाँ हो गईं 
इनसे मिलकर दिल की सब शमएँ फरोज़ाँ हो गईं 

आपकी नज़रों ने जब हमको शरारत से छुआ
दिल की दीवारें महब्बत से निगाराँ हो गईं 

मुश्किलों के दौर में मुझमें छिपीं कुछ सीरतें
मौक़ा पाते ही जमाने पर नुमायाँ हों गईं

जब नहीं पाया महब्बत का महब्बत से जवाब 
ख़्वाहिशों की तितलियाँ दिल में ही पिन्हाँ हो गईं

पानी के बिन प्यास हमने क्या बुझानी सीख ली 
लहरों की इठलाहटें “निर्मल” पशेमाँ हो गईं

लेखक

  • रचना निर्मल जन्मतिथि - 05 अगस्त 1969 जन्म स्थान - पंजाब (जालंधर) शिक्षा - स्नातकोत्तर प्रकाशन- 5 साझा संग्रह उल्लेखनीय सम्मान/पुरस्कार महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार संप्रति - प्रवक्ता ( राजनीति विज्ञान) संपर्क - 202/A 3rd floor Arjun Nagar

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आपकी आँखें हमारी राहत ए जाँ हो गईं/ग़ज़ल/रचना निर्मल

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