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मैं कैसे अमरित बरसाऊँ/कविता/नागार्जुन

मैं कैसे अमरित बरसाऊँ

बजरंगी हूँ नहीं कि निज उर चीर तुम्हें दरसाऊँ !
रस-वस का लवलेश नहीं है, नाहक ही क्यों तरसाऊँ ?
सूख गया है हिया किसी को किस प्रकार सरसाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
नभ के तारे तोड़ किस तरह मैं महराब बनाऊँ ?
कैसे हाकिम और हकूमत की मै खैर मनाऊँ ?
अलंकार के चमत्कार मै किस प्रकार दिखलाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
गज की जैसी चाल , हरिन के नैन कहाँ से लाऊँ ?
बौर चूसती कोयल की मै बैन कहाँ से लाऊँ ?
झड़े जा रहे बाल , किस तरह जुल्फें मै दिखलाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
कहो कि कैसे झूठ बोलना सीखूँ और सिखलाऊँ ?
कहो कि अच्छा – ही – अच्छा सब कुछ कैसे दिखलाऊँ ?
कहो कि कैसे सरकंडे से स्वर्ण – किरण लिख लाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
कहो शंख के बदले कैसे घोंघा फूंक बजाऊँ ?
महंगा कपड़ा, कैसे मैं प्रियदर्शन साज सजाऊँ ?
बड़े – बड़े निर्लज्ज बन गए, मै क्यों आज लजाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
लखनऊ – दिल्ली जा – जा मै भी कहो कोच गरमाऊँ ?
गोल – मोल बातों से मै भी पब्लिक को भरमाऊँ ?
भूलूं क्या पिछली परतिज्ञा , उलटी गंग बहाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
चाँदी का हल , फार सोने का कैसे मैं जुतवाऊँ ?
इन होठों मे लोगों से कैसे रबड़ी पुतवाऊँ ?
घाघों से ही मै भी क्या अपनी कीमत कुतवाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
फूंक मारकर कागज़ पर मैं कैसे पेड़ उगाऊँ ?
पवन – पंख पर चढ़कर कैसे दरस – परस दे जाऊँ ?
किस प्रकार दिन – रैन राम धुन की ही बीन बजाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
दर्द बड़ा गहरा किस – किससे दिल का हाल बताऊँ ?
एक की न, दस की न , बीस की , सब की खैर मनाऊँ ?
देस – दसा कह – सुनकर ही दुःख बाँटू और बटाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
बकने दो , बकते हैं जो , उन को क्या मैं समझाऊँ ?
नहीं असंभव जो मैं उनकी समझ में कुछ न आऊँ ?
सिर के बल चलनेवालों को मैं क्या चाल सुझाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?
जुल्मों के जो मैल निकाले , उनको शीश झुकाऊँ ?
जो खोजी गहरे भावों के , बलि – बलि उन पे जाऊँ !
मै बुद्धू , किस भांति किसी से बाजी बदूँ – बदाऊँ ?
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?
पंडित की मैं पूंछ , आज – कल कबित – कुठार कहाऊँ !
जालिम जोकों की जमात पर कस – कस लात जमाऊँ !
चिंतक चतुर चाचा लोगों को जा – जा निकट चिढाऊँ !
तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?

लेखक

  • नागार्जुन (30जून 1911- 5 नवम्बर 1998) का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था। वह हिन्दी और मैथिली के लेखक और कवि थे। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार थे । उन्होंने संस्कृत एवं बाङ्ला में भी मौलिक रचनाएँ कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया । साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने हिन्दी साहित्य में नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। काशी में रहते हुए उन्होंने 'वैदेह' उपनाम से भी कविताएँ लिखी थीं। सन् १९३६ में सिंहल में 'विद्यालंकार परिवेण' में ही 'नागार्जुन' नाम ग्रहण किया। उनकी रचनाएँ हैं; कविता-संग्रह: युगधारा -१९५३, सतरंगे पंखोंवाली -१९५९, प्यासी पथराई आँखें -१९६२, तालाब की मछलियाँ -१९७४, तुमने कहा था -१९८०, खिचड़ी विप्लव देखा हमने -१९८०, हज़ार-हज़ार बाहों वाली -१९८१, पुरानी जूतियों का कोरस -१९८३, रत्नगर्भ -१९८४, ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या!! -१९८५, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने -१९८६, इस गुब्बारे की छाया में -१९९०, भूल जाओ पुराने सपने -१९९४, अपने खेत में -१९९७; प्रबंध काव्य: भस्मांकुर -१९७०, भूमिजा; उपन्यास: रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नयी पौध -१९५३, बाबा बटेसरनाथ, वरुण के बेटे, दुखमोचन, कुंभीपाक/चम्पा, हीरक जयन्ती/अभिनन्दन, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, गरीबदास; संस्मरण: एक व्यक्ति: एक युग; कहानी संग्रह: आसमान में चन्दा तैरे -१९८२ । मैथिली कविता-संग्रह: चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ, पका है यह कटहल ।

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