बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा
बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा!
आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ
कहिए उस से हाथ मिलाकर क्या होगा!
नाजुक है,नादाँ है-संभाले रखिए
दिल दीवारों से टकरा कर क्या होगा!
काग़ज के ये फूल रंग है,गंध नहीं
इनसे पूजन – थाल सजा कर क्या होगा!
जो भी मैल भरा है मन में, साफ़ करो
वरना गंगा रोज़ नहाकर क्या होगा!
लेखक
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रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125
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