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जब हवाओं में है आग की-सी लहर/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

जब हवाओं में है आग की-सी लहर
देखिए, खिल रहे गुलमोहर किस क़दर!

हौसले की बुलन्दी न कम हो कभी
आदमी के लिए ही बना हर शिखर

उस तरफ़ का किनारा न उसके लिए
जिसके भीतर भरा डूब जाने का डर

ज़िन्दगी बे-उसूलों की ऐसी लगे
जैसे बे-शाख़, बिन पत्तियों का शजर

चाँदनी में चिराग़ों को मत भूलिए
चार दिन चाँदनी फिर अँधेरी डगर

पहले जैसी कहाँ गाँव की छाँव है
गाँव में घुस रहा रफ़्ता-रफ़्ता शहर

बाख़ुशी आप बेशक वफ़ा कीजिए
दर्द होगा सिला ढूँढिएगा अगर

लेखक

  • रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125

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