कितने बुझे बुझे हैं मनाज़िर बहार के/ग़ज़ल/प्रेमकिरण
कितने बुझे बुझे हैं मनाज़िर बहार के पेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के शाख़ें हरी भरी हैं न फूलों पे तितलियां दो रोज़ के थे सारे नज़ारे बहार के बिखरे हुए हैं टूट के पत्ते यहां वहां नग़्में सुनायें क्या कोई ऐसे में प्यार के मांगे की रौशनी से उजाला है हर तरफ़ […]