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कितने बुझे बुझे हैं मनाज़िर बहार के/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

कितने बुझे बुझे हैं मनाज़िर बहार के पेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के शाख़ें हरी भरी हैं न फूलों पे तितलियां दो रोज़ के थे सारे नज़ारे बहार के बिखरे हुए हैं टूट के पत्ते यहां वहां नग़्में सुनायें क्या कोई ऐसे में प्यार के मांगे की रौशनी से उजाला है हर तरफ़ […]

रंग बदलते इन्सानों को देखा है/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

रंग बदलते इन्सानों को देखा है इस दुनिया में मतलब का हर रिश्ता है शह्र नहीं यह जंगल है और जंगल में सारे वक़्त कलेजा मुंह को आता है काला नाग जकड़ लेता है सूरज को उसकी जकड़न से वो कैसे उभरा है उसको पूजने वाले कैसे कैसे लोग वो जो वक़्त पे चलने वाला […]

फ़स्लें तमाम लूट के सैलाब ले गया/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

फ़स्लें तमाम लूट के सैलाब ले गया देकर अज़ाब जीने का असबाब ले गया उसको ख़बर नहीं कि वो शुह्रत के ज़ोम में आंखों से शह्रे-गिरिया के सब ख़्वाब ले गया हमको था नाख़ुदा पे भरोसा बहुत मगर कश्ती हमारी जानिबे-गिर्दाब ले गया इक जलपरी से इश्क़ का अंजाम ये हुआ बेताब दिल हमारा तहे-आब […]

चुन चुन कर हम नफ़रत की हर इक दीवार गिरायेंगे/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

चुन चुन कर हम नफ़रत की हर इक दीवार गिरायेंगे हमको ज़िद है, इस धरती को इक दिन स्वर्ग बनायेंगे ख़ंजर-वंजर, चाकू-वाकू, ख़ून-ख़राबा क्या जानें प्रेमनगर के वासी हैं हम प्रेम के नग़्में गायेंगे एक ज़माने से इक जोंक बदन से चिपकी चिपकी है आख़िर कब तक इसको यूं ही अपना ख़ून पिलायेंगे कबतक उसके […]

पहली पहली बार हमारे घर आंगन में उतरा चांद/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

पहली पहली बार हमारे घर आंगन में उतरा चांद रात गये तक जाग के हमने टुकड़ा टुकड़ा देखा चांद दिन भर की सारी थकन को पल भर में हम भूल गये घर आते ही दौड़ के लिपटा पापा…पापा कहता चांद दुख की रातें काट रही है बुढ़िया बैठी चरखे पर उसके आंसू बिखरे तारे दादी […]

जागी आंखों का सपना है बीबी बच्चा घर/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

जागी आंखों का सपना है बीबी बच्चा घर छोड़ के इक दिन सब जायेंगे रोता गाता घर जीता मरता कौन हमारे हर सपने के साथ सारे बच्चे देख रहे हैं अपना अपना घर वो क्या जानें जोड़ी गयी है कैसे इक इक ईंट बेटों को तो मिल जाता है बना बनाया घर बंटवारे का पहला […]

नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी घर से हमारे रूठ के बरकत चली गयी हम भी ख़ुशी के नाज़ उठाते कहां तलक अच्छा हुआ कि घर से मुसीबत चली गयी दो भाइयों के बीच की नफ़रत न पूछिए घर से निकल के बात अदालत चली गयी अच्छा था हम ग़रीब थे इन्सानियत तो […]

रोना नहीं आता हमें हंसना नहीं आता/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

रोना नहीं आता हमें हंसना नहीं आता हर शख्स को जीने का सलीक़ा नहीं आता तूफ़ान में संभले तो फंसे आ के भंवर में दुख आता है लेकिन कभी तन्हा नहीं आता कीचड़ में कंवल आप है अपने लिए तमसील फूलों में किसी को ये सलीक़ा नहीं आता इस नाव का पतवार भी मांझी भी […]

कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या ख़्वाब की नगरी रियासत है मेरी और दे जाते मेरे अजदाद क्या फूल से चेहरे हुए बे आब क्यों मौसमों की फिर पड़ी उफ़्ताद क्या कोई मैना है न बुलबुल शाख़ पर बाग़बां भी हो गये सैय्याद क्या हो गयी तहज़ीब अपनी […]

चलते चलते आ गया ये कैसा रस्ता सामने/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

चलते चलते आ गया ये कैसा रस्ता सामने दूर तक फैला हुआ है घुप् अंधेरा सामने सब सियासत ही के गंदे खेल में मसरूफ़ हैं डर रहा हूंं देख कर अंजामे-फ़र्दा सामने सहमे सहमे से हैं बच्चे हंसती गुड़िया देखकर कल धमाके में मरा था एक बच्चा सामने आंधियों का दौर है ये हर शजर […]

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