दिखाना ख़ुद को है तो यूँ दिखाएँ
हथेली पर कभी सरसों जमाएँ
भला क्यों भूख का मातम करें हम
न क्यों मिल चाँद को रोटी बनाएँ
अगर ख़्वाहिश बहुत है तैरने की
समंदर में अकेले कूद जाएँ
दिया है कान भी भगवान ने जब
हमेशा जीभ क्यों अपनी चलाएँ
बहुत है राह सीधी ज़िंदगी की
अगर देखें कभी दाएँ न बाएँ
अँधेरा फैलने से ठीक पहले
चलो इक रोशनी का गीत गाएँ
हो बस इतना ही हासिल ज़िंदगी का
कि मरने वालों को जीना सिखाएँ
दिखाना ख़ुद को है तो यूँ दिखाएँ/ग़ज़ल/अंजू केशव