चार पल भी जो गुज़र जाते हैं मनमानी के साथ
उम्र सारी फिर तो कट जाती है आसानी के साथ
ज़हनियत में फँस गई तो होगी बोझिल जिंदगी
हैं मज़ा इसका भी असली सिर्फ नादानी के साथ
कोशिशें करना हमारा है अमल करते भी हैं
पर मिटी है कब लिखी तहरीर पेशानी के साथ
दोस्ती या दुश्मनी भी हो परख कर आदमी
कीजिए तलवारबाजी मत कभी पानी के साथ
रौनकें औ’ रौशनी तो शहर के हैं चोंचले
जंगलों की है गुज़र जाती बियाबानी के साथ
पोल खुल जाएगी माँ के जिंदगी की एक-एक
बस ज़रा बच्चों गुज़ारो वक्त तो नानी के साथ
ख़ैर मक़्दम हम दुखों का भी किया करते सदा
हम न वो जो ज़िंदगी ढोए परेशानी के साथ
चार पल भी जो गुज़र जाते हैं मनमानी के साथ /ग़ज़ल/अंजू केशव