आपने झूठ को ही बाना बना रक्खा है
रूप यूँ अपना फ़क़ीराना बना रक्खा है
अपने हर शौक़ को तब्दील नशे में है किया
ज़िंदगी! तुमको भी मय ख़ाना बना रक्खा है
कुछ ज़ियादा ही समझने लगे हैं हम उसको
जब से उसने हमें बेगाना बना रक्खा है
है जो इंकार लगातार तेरी आँखों में
बस उसी नें मुझे दीवाना बना रक्खा है
बाँटते फिरते हैं हम दर्द के नुस्ख़े सबको
टूटे इस दिल को दवाखाना बना रक्खा है
ज़िंदगी की न लगे धूप मेरे ख़्वाबों को
सो पलक! तुमको ही शमियाना बना रक्खा है
आँसुओं की है मेरे और हक़ीक़त लेकिन
लोगों नें उसका भी अफ़साना बना रक्खा है
आपने झूठ को ही बाना बना रक्खा है/ग़ज़ल/अंजू केशव