थोड़ी-थोड़ी बचा के रक्खी है,/गज़ल/संगीता श्रीवास्तव ‘सुमन’
थोड़ी-थोड़ी बचा के रक्खी है, अपनी हस्ती बचा के रक्खी है। मैंने ख़ुद में बड़े सलीक़े से, एक लड़की बचा के रक्खी है। थोड़ी गुमसुम सी खोई-खोई वो, कट्टी-बट्टी बचा के रक्खी है। सारे गुलशन के रंग हैं जिसमें, ऐसी तितली बचा के रक्खी है। उस पे कब्ज़ा कभी न होने दिया, दिल की दिल्ली […]