शाम ढले घर लौट रहे हैं ख़ुद से ही उकताए लोग/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
शाम ढले घर लौट रहे हैं ख़ुद से ही उकताए लोग अपनी नाकामी की गठरी कंधे पर लटकाए लोग चिंता में हैं या चिंतन में, ये कह पाना मुश्किल है दीवारों को ताक रहे हैं बिन पलकें झपकाए लोग ख़स्ताहाल पुराने अल्बम की धुँधली तस्वीरों में जाने कबसे ढूँढ रहे हैं ख़ुद को आँख गड़ाए […]