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शाम ढले घर लौट रहे हैं ख़ुद से ही उकताए लोग/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

शाम ढले घर लौट रहे हैं ख़ुद से ही उकताए लोग अपनी नाकामी की गठरी कंधे पर लटकाए लोग चिंता में हैं या चिंतन में, ये कह पाना मुश्किल है दीवारों को ताक रहे हैं बिन पलकें झपकाए लोग ख़स्ताहाल पुराने अल्बम की धुँधली तस्वीरों में जाने कबसे ढूँढ रहे हैं ख़ुद को आँख गड़ाए […]

हर वक़्त हूँ किसी न किसी इम्तिहान में/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

हर वक़्त हूँ किसी न किसी इम्तिहान में शायद इसीलिए है ये तल्ख़ी ज़ुबान में अपनी अना की क़ैद से बाहर निकल के देख पैवंद लग चुके हैं तेरी आन-बान में सोह्बत बुरी मिली तो ग़लत काम भी हुए वैसे कोई कमी तो न थी ख़ानदान में ग़म भी, ख़ुशी भी, आह भी, आँसू भी, […]

एक मछली जो मर्तबान में है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

एक मछली जो मर्तबान में है कोई दरिया भी उसके ध्यान में है तेग़ जौहर दिखा के म्यान में है जीत के जश्न की थकान में है बादलों ने लिखी है नज़्म कोई ये जो तस्वीर आसमान में है टूटते देखे हैं सितारे भी आदमी जाने किस गुमान में है दुश्मनी भी तेरी अज़ीज़ है […]

कभी अँधेरे, कभी रोशनी में आते हुए/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

कभी अँधेरे, कभी रोशनी में आते हुए मैं चल रहा हूँ वजूद अपना आज़माते हुए करेगा कौन हिफ़ाज़त अब इनकी मेरे बाद ये सोचता हूँ दिये से दिया जलाते हुए तुम्हारी यादों ने आसान कर दिया है सफ़र जो चल रही हैं मुझे रास्ता दिखाते हुए कहीं तबाह न कर दे नशे की लत उसको […]

मुसाफि़र हूँ इक अनजानी डगर का/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

मुसाफि़र हूँ इक अनजानी डगर का कुछ अंदाज़ा नहीं होता सफ़र का मेरे ख़्वाबो, मेरी नींदें सजा दो कि मैं जागा हुआ हूँ उम्रभर का हैं मुझमें ख़ामियाँ यूँ तो बहुत-सी मगर पैकर हूँ मैं इल्मो-हुनर का मुझे रख लो पनाहों में तुम अपनी भरोसा क्या भला दीवारो-दर का सुनो मुझसे अँधेरों की कहानी दिया […]

बादलों की सुरमई छतरी यहाँ तानी गई/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

बादलों की सुरमई छतरी यहाँ तानी गई तब कहीं तपते हुए सूरज की मनमानी गई शुक्रिया तेरा, मेरी ख़ानाबदोशी शुक्रिया तू मिली तो गर्दिशों की ज़ात पहचानी गई अब हँसी आती है तो अश्कों की उँगली थामकर मुश्किलों के साथ जी लेने की आसानी गई हर तरफ़ रोशन हुए फिर से उमीदों के चिराग़ आँधियों […]

पेड़ जो खोखले, पुराने हैं/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

पेड़ जो खोखले, पुराने हैं अब परिंदों के आशियाने हैं और बाक़ी कई तराने हैं जो तेरे साथ गुनगुनाने हैं क़र्ज़ कल के चुका रहा हूँ आज आज के क़र्ज़ कल चुकाने हैं आँसुओ! आज तो ठहर जाओ आज कुछ क़हक़हे लगाने हैं जि़ंदगी और थोड़ी मुहलत दे तेरे अहसान भी चुकाने हैं इश्क़ है […]

जब कोई अक्स निगाहों में ठहर जाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

जब कोई अक्स निगाहों में ठहर जाता है दिल तमन्नाओं को कपड़े नये पहनाता है ज़िंदगी होती है जब मौत की आग़ोश में गुम पंछी उड़कर कहीं आकाश में खो जाता है खाइयाँ लेती हैं बरसात के पानी का मज़ा ये हुनर ख़ुश्क पहाड़ों को कहाँ आता है बंद कमरे में जो जलता था बड़ी […]

फ़ैसलों के बीच में जो सोच की दीवार है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

फ़ैसलों के बीच में जो सोच की दीवार है उसको भी आखि़र किसी अंजाम की दरकार है ढूँढता फिरता है इंसाँ आज ख़ुद अपना वजूद आरज़ूओं की कुछ इतनी तेज़तर रफ़्तार है भूख उसके जिस्म से छलकी तो सबने ये कहा वो ज़रूरतमंद है, लेकिन बड़ा ख़ुद्दार है चंद उम्मीदें हैं अपने पास, वो भी […]

ज़ह्न की आवारगी को इस क़दर प्यारा हूँ मैं/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

ज़ह्न की आवारगी को इस क़दर प्यारा हूँ मैं साथ चलती है मेरे, इक ऐसा बंजारा हूँ मैं राख ने मेरी ही ढक रक्खा है मुझको आजकल वरना तो ख़ुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं जि़ंदगी की कशमकश ने सोख ली सारी मिठास मैं समंदर हूँ, मगर बेइंतिहा खारा हूँ मैं अपनेपन के रेशमी […]

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