+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

बाद तुम्हारे सब अपनों के मनमाने व्यवहार हुए/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

बाद तुम्हारे सब अपनों के मनमाने व्यवहार हुए मुस्कानें ही क्या, आँसू भी सालाना त्योहार हुए आँखों में सैलाब उठा तो दामन भी दरकार हुआ और जब दामन हाथ में आया, सब आँसू ख़ुद्दार हुए घर में सबकी अपनी ख़्वाहिश, सबकी अपनी फ़रमाइश आज हमें तनख़्वाह मिली है, हम भी इज़्ज़तदार हुए सबकी नज़रों में […]

वफ़ा भी, प्यार भी, नफ़रत भी, बदगुमानी भी/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

वफ़ा भी, प्यार भी, नफ़रत भी, बदगुमानी भी है सबकी तह में हक़ीक़त भी और कहानी भी जलो तो यूँ कि हर इक सिम्त रोशनी हो जाय बुझो तो यूँ कि न बाक़ी रहे निशानी भी ये जि़ंदगी है कि शतरंज की बिसात कोई ज़रा-सी चूक से पड़ती है मात खानी भी किसी की जीत […]

राहत दो या उलझन दो/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

राहत दो या उलझन दो ज़ह्न को कुछ तो ईंधन दो घोर अँधेरा, तेज़ हवा एक दिये के दुश्मन दो आपस की नासमझी है एक ही घर में आँगन दो नई दुल्हन कितनी ख़ुश है अबके बरस में सावन दो आपस में खटकेंगे भी गर हों घर में बर्तन दो गिनलूँ मैं अपने भी दाग़ […]

ख़ुद को मैं ही कहाँ समझ पाया/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

ख़ुद को मैं ही कहाँ समझ पाया जिस्म हूँ या लिबास का साया जिनके चारों तरफ़ हैं दीवारें उन मकानों में कौन रह पाया ज़र्द पत्तों की थरथराहट ने फ़लसफ़ा जि़ंदगी का समझाया हैं तेरे इंतज़ार में दोनों एक मैं, एक मेरा हमसाया साथ लाये थे जो यक़ीन के साथ उन्हीं रस्तों ने मुझको भटकाया […]

झूठ है, छल है, कपट है, जंग है, तकरार है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

झूठ है, छल है, कपट है, जंग है, तकरार है सोचता रहता हूँ अक्सर, क्या यही संसार है ज़ह्न से उलझा हुआ है मुद्दतों से ये सवाल आदमी सामान है या आदमी बाज़ार है इस तरक़्क़ी पर बहुत इतरा रहे हैं आज हम जूतियाँ सर पर रखी हैं, पाँव में दस्तार है आज भी उससे […]

अब किसी घर में न खिड़की है, न रोशनदान है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

अब किसी घर में न खिड़की है, न रोशनदान है देखिए कितना डरा-सहमा हुआ इंसान है ढेर पर बारूद के बैठा हुआ इंसान है अब उसे अपने पराये की कहाँ पहचान है उसको दरियाओं के सपने कैसे दे पाएँ सुकून दूर तक जिसकी नज़र में सिर्फ़ रेगिस्तान है फ़ासला कितना है पीठ और पेट में […]

जब भी कोई नन्हा पौधा सूरज से बतियाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

जब भी कोई नन्हा पौधा सूरज से बतियाता है जाने क्यों बूढ़े बरगद की आँखों में चुभ जाता है इस दुनिया को ठीक तरह से देखो, समझो, पहचानो ये मेरे अलफ़ाज़ नहीं हैं, ये इतिहास बताता है चिडि़यों के दाना चुगने पर पाबंदी है सख़्त, मगर साहूकार को देखो, बोरे भर-भरकर ले जाता है प्यासी […]

जीत किसके लिये, हार किसके लिए/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

जीत किसके लिये, हार किसके लिए जि़ंदगीभर ये तकरार किसके लिए जो भी आया है वो जायेगा एक दिन फिर ये इतना अहंकार किसके लिए तोड़ डाले तअल्लुक़ के बंधन तो फिर जन्मदिन पर ये उपहार किसके लिए पूछते हैं अँधेरे चिराग़ों से अब रोशनी का पुरस्कार किसके लिए जि़ंदगी तेरा कोई नहीं है तो […]

अपने कौन, पराये कौन/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

अपने कौन, पराये कौन तुमको ये समझाये कौन ख़ौफ़ज़दा हैं सारे लोग ज़ालिम से टकराये कौन जब तक तू बेचारा है तेरा साथ निभाये कौन सोच रहे हैं सब तालाब सागर तक पहुँचाये कौन बाद तुम्हारे अब ऐ दोस्त बिगड़ी बात बनाये कौन अब भी मैं उसका ही हूँ उसको ये बतलाये कौन सोच रहा […]

मन में जाने कैसा घाव है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

मन में जाने कैसा घाव है आजकल बड़ा तनाव है हाथ सेंकती हैं ख़्वाहिशें जि़ंदगी है या अलाव है कर रहा हूँ इसलिए यक़ीन आपसे मुझे लगाव है ऐ थकन से पस्त हौसलो! बस, ये आखि़री पड़ाव है जाने कैसा दौर आ गया हर नज़र में भेदभाव है ये ठिठोलियाँ, हँसी-मज़ाक़ क्या करूँ मेरा स्वभाव […]

×