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इतना-सा लेखा-जोखा है, जीवन की अलमारी में/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

इतना-सा लेखा-जोखा है, जीवन की अलमारी में कुछ तो वक़्त सफ़र में गुज़रा, कुछ उसकी तैयारी में एक ज़रा-सी नासमझी में, सब कुछ जलकर राख हुआ शोला एक छिपा बैठा था, छोटी-सी चिंगारी में कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें हैं, कुछ शुहरत, कुछ गुमनामी रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, यादों की फुलवारी में सिर्फ़ तुम्हारे प्यार की […]

इक साक़ी है, इक मैकश है, बैठे हैं दीवाने दो/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

इक साक़ी है, इक मैकश है, बैठे हैं दीवाने दो पीने वाला एक है लेकिन छलके हैं पैमाने दो गमले में इक फूल खिला है, फूल पे तितली बैठी है दोनों ही आपस में ख़ुश हैं, अच्छा है इतराने दो आखि़रकार दिलासा पाकर, अक्सर चुप हो जाता है दिल भोला-भाला बच्चा है, इसको ख़ुश हो […]

न मैं तुमको समझ पाया, न तुम मुझको समझ पाए/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

न मैं तुमको समझ पाया, न तुम मुझको समझ पाए अधूरापन लिए दोनों बहुत आगे निकल आए ये दुनिया है, यहाँ ऐसे भी धोखे ख़ूब होते हैं कि जैसे कोई चिडि़या आइने से चोंच टकराए भुला डाला पुरानी इक कहानी की तरह उसको मगर फिर हम उदासी की गुफाओं में उतर आए भला कब टिक […]

वो जिसका ताज काँटों से जड़ा है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

वो जिसका ताज काँटों से जड़ा है ज़माना उसके क़दमों में पड़ा है बताती है तेरे लहजे की नरमी तुझे कुछ काम मुझसे आ पड़ा है सिला मेह्नत का मिल पाए तो कैसे मुक़द्दर रास्ता रोके खड़ा है ढला सूरज तो मैं ये जान पाया मेरा साया मेरे क़द से बड़ा है हँसी ज़ेवर है […]

जिस घर में वफ़ा और मुहब्बत न मिलेगी/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

जिस घर में वफ़ा और मुहब्बत न मिलेगी उस घर में कोई चीज़ सलामत न मिलेगी बाज़ार में बैठे हो तो इतना भी समझ लो क़ीमत तो मिलेगी, कभी इज़्ज़त न मिलेगी संसार तो कुछ रोज़ ठहरने की जगह है बसने की किसी को भी इजाज़त न मिलेगी ऐ नींद, मुझे दे दे कोई ख़्वाब […]

मैं नन्हा-सा दिया हूँ, जानता हूँ/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

मैं नन्हा-सा दिया हूँ, जानता हूँ और अपना फ़र्ज़ भी पहचानता हूँ सिमट जाते हैं मेरे पाँव ख़ुद ही मैं जब रिश्तों की चादर तानता हूँ किनारा हूँ भले सूखी नदी का मैं अपना सिलसिला पहचानता हूँ कई ख़ानों की अलमारी है दुनिया मैं इसकी सब हक़ीक़त जानता हूँ डराती है हमेशा कमनसीबी मगर मैं […]

अब न कुहरा है, न अब सर्द फ़ज़ा, कुछ भी नहीं/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

अब न कुहरा है, न अब सर्द फ़ज़ा, कुछ भी नहीं गुनगुनी धूप की मस्ती के सिवा, कुछ भी नहीं दिन बदलते ही बदल जाते हैं पिछले मंज़र बेहुनर सोच ये कहती है, नया कुछ भी नहीं जिनको आता नहीं रिश्तों की हिफ़ाज़त करना वो समझते हैं कि प्यार और वफ़ा कुछ भी नहीं कोशिशें […]

अब तो बस ख़ुद को बहरहाल ये समझाना है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

अब तो बस ख़ुद को बहरहाल ये समझाना है तेरी चौखट के सिवा और कहाँ जाना है ये जो दुनिया है, भला किसकी हुई है अब तक सर हमें भी इसी दीवार से टकराना है तू मुसाफि़र है, तेरा फ़र्ज़ है चलते रहना पाँव के छालों से फिर किसलिए घबराना है पोंछकर अश्क हँसो और […]

ये जो रिश्ते हैं, ये लगते तो हैं जीवन की तरह/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

ये जो रिश्ते हैं, ये लगते तो हैं जीवन की तरह कैफि़यत इनकी है लेकिन किसी बंधन की तरह तुम अगर चाहो, तो इक तुलसी का पौधा बन जाओ मेरे अहसास महक उट्ठेंगे आँगन की तरह जबसे दिल उसके ख़यालों से हुआ है रोशन धड़कनें नाच रही हैं किसी जोगन की तरह अब तो सुख-चैन […]

वादों की फ़हरिस्त दिखाई और तक़रीरें छोड़ गए/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

वादों की फ़हरिस्त दिखाई और तक़रीरें छोड़ गए वो सहरा में दरियाओं की कुछ तस्वीरें छोड़़ गए कच्ची नींदों से उकताए, अलसाए, झुँझलाए ख़्वाब आँखों की दहलीज़ पे आए, कुछ ताबीरें छोड़ गए घर आए कुछ मेह्मानों का ऐसा भी बरताव रहा दीवारों पर आड़ी-तिरछी चंद लकीरें छोड़ गए रेगिस्तान में उठने वाले तेज़ बगूले […]

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