इतना-सा लेखा-जोखा है, जीवन की अलमारी में/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
इतना-सा लेखा-जोखा है, जीवन की अलमारी में कुछ तो वक़्त सफ़र में गुज़रा, कुछ उसकी तैयारी में एक ज़रा-सी नासमझी में, सब कुछ जलकर राख हुआ शोला एक छिपा बैठा था, छोटी-सी चिंगारी में कुछ आँसू, कुछ मुस्कानें हैं, कुछ शुहरत, कुछ गुमनामी रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, यादों की फुलवारी में सिर्फ़ तुम्हारे प्यार की […]