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सँभलकर राह में चलना वही पत्थर सिखाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

सँभलकर राह में चलना वही पत्थर सिखाता है हमारे पाँव के आगे जो ठोकर बनके आता है नहीं दीवार के ज़ख़्मों का कुछ अहसास इंसाँ को जो कीलें गाड़ने के बाद तस्वीरें लगाता है मैं जैसे वाचनालय में रखा अख़बार हूँ कोई जो पढ़ता है वो बेतरतीब अक्सर छोड़ जाता है मुसव्विर प्यास की हद […]

अपनी औक़ात से बढ़ने की सज़ा पाती है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

अपनी औक़ात से बढ़ने की सज़ा पाती है धूल उड़ती है तो धरती पे ही आ जाती है अबकी सूरज से मिलेंगे तो यही पूछेंगे छाँव पेड़ों की तेरे साथ कहाँ जाती है तह में सागर की यक़ीनन ही मरुस्थल होंगे हर नदी वरना कहाँ जाके समा जाती है पेट की आग बुझा दे मेरे […]

जो पेड़ सबको कड़ी धूप से बचाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

जो पेड़ सबको कड़ी धूप से बचाता है वो सर्दियों में अलावों के काम आता है यहाँ फ़रेब के काँटों की उग रही है फ़स्ल तू ऐतबार की चादर कहाँ बिछाता है भरोसा तुझपे करूँ भी तो किस तरह ऐ दोस्त तू बात-बात पे अहसान जो गिनाता है तू मेरे पास है, इतना बहुत है […]

तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की छतें जिनकी हिमायत चाहती हों आसमानों की ये कालोनी है या बाज़ार है बेरोज़गारों का जिधर देखो क़तारें ही क़तारें हैं दुकानों की मुरादाबाद में कारीगरी ढोता हुआ बचपन लिये फिरता है साँसों में सियाही कारख़ानों की उगा है फिर नया सूरज, दिशाएँ हो गयीं रोशन परिंदो! […]

जो ख़ुद उदास हो, वो क्या ख़ुशी लुटाएगा/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

जो ख़ुद उदास हो, वो क्या ख़ुशी लुटाएगा बुझे दिये से दिया किस तरह जलाएगा मिली जो तीर को मंजि़ल, तो ख़ुश कमान हुई हुआ मलाल भी, अब लौटकर न आएगा वो बंद कमरे के गमले का फूल है यारो वो मौसमों का भला हाल क्या बताएगा मैं जानता हूँ, तेरे बाद मेरी आँखों में […]

बता रहे हैं ये सरसों के फूल बल खाकर/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

बता रहे हैं ये सरसों के फूल बल खाकर बहार आई है खेतों में अबके इठलाकर जहाँ शरीर से लेकर ज़मीर तक बिक जाय नई हवाओं ने छोड़ा वहाँ पे ले जाकर बता रहा है वो ख़ुद को मुहब्बतों का चिराग़ हर एक सिम्त धुआँ नफ़रतों का फैलाकर अब इंतज़ार में कटते हैं रात-दिन अपने […]

शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है तू थके-माँदे परिंदों को उड़ाता क्यों है स्वाद कैसा है पसीने का, ये मज़दूर से पूछ छाँव में बैठ के अंदाज़ा लगाता क्यों है मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है मुस्कराना है मेरे होंठों की आदत […]

क्या हुआ तुमको अगर चेह्रे बदलना आ गया/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

क्या हुआ तुमको अगर चेह्रे बदलना आ गया हमको भी हालात के साँचे में ढलना आ गया रोशनी के वास्ते धागे को जलते देखकर ली नसीहत मोम ने, उसको पिघलना आ गया शुक्रिया, बेहद तुम्हारा शुक्रिया, ऐ पत्थरो! सर झुकाकर जो मुझे रस्ते पे चलना आ गया सरफिरी आँधी से उसकी दोस्ती क्या हो गई […]

हमने यूँ भी वक़्त गुज़ारा मस्ती में, याराने में/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

हमने यूँ भी वक़्त गुज़ारा मस्ती में, याराने में जब जी चाहा घर से निकले, बैठ गए मयख़ाने में दुनिया की हर रौनक़ उसको फीकी लगने लगती है रम जाता है जब भी कोई दीवाना दीवाने में अब तक एक जलन बाक़ी है, अब तक होंठ सुलगते हैं फूल समझकर चूम लिया था, अंगारा अनजाने […]

कलियाँ, फूल, सितारे, शबनम, जाने क्या-क्या चूम लिया/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

कलियाँ, फूल, सितारे, शबनम, जाने क्या-क्या चूम लिया जब मैंने बाँहों में भरकर, उसका माथा चूम लिया हम दीवानों की दुनिया के अद्भुत तौर-तरीक़े हैं हम जब भी मस्ती में झूमे, अपना साया चूम लिया सबकी अपनी-अपनी चाहत, सबकी अपनी-अपनी रीत एक ने घर की चौखट चूमी, एक ने सहरा चूम लिया क्या दूरी, कैसी […]

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