सँभलकर राह में चलना वही पत्थर सिखाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
सँभलकर राह में चलना वही पत्थर सिखाता है हमारे पाँव के आगे जो ठोकर बनके आता है नहीं दीवार के ज़ख़्मों का कुछ अहसास इंसाँ को जो कीलें गाड़ने के बाद तस्वीरें लगाता है मैं जैसे वाचनालय में रखा अख़बार हूँ कोई जो पढ़ता है वो बेतरतीब अक्सर छोड़ जाता है मुसव्विर प्यास की हद […]