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हाथों से पत्थर तोड़ने बैठा/गज़ल/डॉ. भावना

नहीं हैं दांत फिर भी आदमी खाने चने बैठा कोई ज्यों मोम के हाथों से पत्थर तोड़ने बैठा जो अक्सर आँच लगते ही उड़ा है भाप की मानिंद वही बादल को बनने में समुन्दर रोकने बैठा फ़सल उग पायेगी कितनी ये उसको भी नहीं मालूम वो पगला रेत को गेहूँ की ख़ातिर जोतने बैठा उठाकर […]

तराना ढूँढ लाना तुम/गज़ल/डॉ. भावना

जो ख़्वाबों में बसा है वह ज़माना ढूँढ़ लाना तुम कहीं बेख़ौफ मिलने का ठिकाना ढूँढ लाना तुम बुना था प्यार से इक दिन तुम्हारे वास्ते मैंने पुलोवर आज वह फिर से पुराना ढूँढ लाना तुम न कोई ग़म , कोई रंजिश , न तनहाई रहे दिल में कहीं से आज उल्फत का खज़ाना ढूँढ़ […]

बढ़ रही हैं जो दूरियाँ घर में/गज़ल/डॉ. भावना

हैं दरीचे न खिड़कियाँ घर में क्यों भला खुश हों बेटियाँ घर में अब हवाओं में दहशतें हैं बहुत चुप – सी बैठी हैं तितलियाँ घर में खोल ही देंगी पोल रिश्तों का बढ़ रही हैं जो दूरियाँ घर में लाड़ली जब गई है अपने घर बेसबब क्यों हैं सिसकियाँ घर में आज गूगल का […]

अब कुहू से काँव की बातें भली/गज़ल/डॉ. भावना

धूप से तपते सफर में छाँव की बातें भली पनघटों पर छपछपाते पाँव की बातें भली हर कदम पर जो सफर में हौसला देता रहा आ रही हैं याद फिर उस गाँव की बातें भली दोस्तों को फिर से बाज़ी हारने का ग़म मिला दुश्मनों को लग रही हैं दाँव की बातें भली आइए हम […]

चेहरा उदास चाँद का रहता है आजकल/गज़ल/डॉ. भावना

सुनता नहीं है कुछ न ही कहता है आजकल चेहरा उदास चाँद का रहता है आजकल आँखों में रखके दर्द का जलता हुआ चिराग चुपचाप ग़म की मार वो सहता है आजकल इक दिन न तुमको फेंक दे जड़ से उखाड़कर झोंका हवा का तेज़ हो बहता है आजकल दौलत की भूख सबको है शोहरत […]

कफ़न पर आ के रुकती है/गज़ल/डॉ. भावना

उड़ानों की हर इक सीमा गगन पर आ के रुकती है प्रथम सीढ़ी सफलता की सपन पर आ के रुकती है यहाँ खरगोश को भी मात दे जाता है इक कछुआ विजय की हर कसौटी तो लगन पर आ के रुकती है बहुत ही खोखली लगतीं वहाँ सम्मान की बातें जहाँ औरत की हर चर्चा […]

अखबार चलाने का हुनर आता है/गज़ल/डॉ. भावना

रूठे सागर को मनाने का हुनर आता है चाँद को ख्वाब दिखाने का हुनर आता है दर्द को फूल सलीके से बना देते हैं जिनको हर ज़ख्म भुलाने का हुनर आता है पल में सो जाता है आँचल में बिलखता बच्चा माँ को क्या खूब सुलाने का हुनर आता है वो लगा देते हैं चेहरे […]

मेरा चेहरा मेरे पीछे/गज़ल/डॉ. भावना

चलेगी जब मुहब्बत की कभी चर्चा मेरे पीछे तुम्हें भी याद आयेगा मेरा चेहरा मेरे पीछे थकी आँखें , बुझी सूरत मगर इक हौसला लेकर कोई है दूर से चलता हुआ आया मेरे पीछे उसे मैं नासमझ समझू नहीं तो और क्या समझूँ मेरे ही घर पे जड़ आता है वह ताला मेरे पीछे भले […]

बनकर बैठा अजगर क्यों है/गज़ल/डॉ. भावना

बाबाओं का चक्कर क्यों है दुनिया इनके दर पर क्यों है क्यों है रातों में बिजली गुम दिन की हालत बदतर क्यों है है तेरा अपराध नहीं जब फिर तू देश के बाहर क्यों है सच की राह चुनी है जबसे पल – पल पग में ठोकर क्यों है झूठ पहनकर सच का चोला बनकर […]

मगर रस्ता समझता है/गज़ल/डॉ. भावना

कहोगे तुम नहीं जितना वो अब उतना समझता है समय की नब्ज़ को अब पेट का बच्चा समझता है भले खो जाए वह अंधा किसी अनजान रस्ते पर गली से घर तक आने का मगर रस्ता समझता है घनेरे जंगलों से आ गया है घर मेरे जबसे मेरा खरगोश रोटी को ही अब चारा समझता […]

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