हाथों से पत्थर तोड़ने बैठा/गज़ल/डॉ. भावना
नहीं हैं दांत फिर भी आदमी खाने चने बैठा कोई ज्यों मोम के हाथों से पत्थर तोड़ने बैठा जो अक्सर आँच लगते ही उड़ा है भाप की मानिंद वही बादल को बनने में समुन्दर रोकने बैठा फ़सल उग पायेगी कितनी ये उसको भी नहीं मालूम वो पगला रेत को गेहूँ की ख़ातिर जोतने बैठा उठाकर […]