+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

Day:

हकीक़त से जो नज़रें फेरते हैं/गज़ल/डॉ. भावना

हवा के साथ चल कर क्या करेंगे तेरे साये में ढल कर क्या करेंगे न गुर हो जिनमें दिल को जीतने का वे चेहरे भी बदल कर क्या करेंगे बहुत हैं दूर हाथों से खिलौने ये बच्चे यूँ मचल कर क्या करेंगे हकीक़त से जो नज़रें फेरते हैं वे ख़्वाबों में टहल कर क्या करेंगे […]

कितने टुकड़ों में है बँटी रोटी/गज़ल/डॉ. भावना

चाँद झूठा मगर सही रोटी सारे रिश्तों में है खरी रोटी कुछ की किस्मत में सिर्फ है सत्तू कुछ की किस्मत में धी – सनी रोटी पेट जिन्दा तो रोटियाँ ज़िन्दा वरना सोचो कहाँ पे थी रोटी अन्नदाता चला गया ऊपर सबकी थाली में लो सजी रोटी तेज़ बारिश में बुझ गया चूल्हा अब तवे […]

ऊँची मचान क्यों है/गज़ल/डॉ. भावना

पर्वत पिघल पड़ा तो पानी को आन क्यों है ? गुमसुम नदी के भीतर ऐसा उफान क्यों है ? अमृत के बदले जिसको केवल गरल मिला हो , तुम पूछते हो उसकी तीखी जुबान क्यों है ? मेरा ही वोट लेकर बैठा है बन के नेता उस आदमी की खातिर ऊँची मचान क्यों है ? […]

वो संभलता चला गया/गज़ल/डॉ. भावना

जो वक्त के हिसाब से चलता चला गया हर मोड़ पर वो आगे निकलता चला गया जैसे कि मोम हूँ मैं , वो जलता हुआ दिया वैसे मेरा वजूद पिघलता चला गया यूँ खुशबू उसकी आन बसी रूह में मेरी मेरा ही अक्स उसमें बदलता चला गया जैसे कि मुँह में बच्चा कोई मिट्टी डाल […]

वह उड़ेगा और ऊँचा देखना/गज़ल/डॉ. भावना

इक खुमारी रात की आँखों में भरता देखकर हँस पड़ा है चाँद भी तारों को हँसता देखकर रेत – सा बिखरा पड़ा जो जिंदगी की धार में मौन है वो दूध और पानी को मिलता देखकर वह उड़ेगा और ऊँचा देखना ए आसमाँ एक बच्चा सोचता चिड़ियों को उड़ता देखकर रुक गया पानी तो सड़ […]

जिंदगी में है दोपहर/गज़ल/डॉ. भावना

कैसा अपना है ये सफर , मालिक कुछ न आता है अब नजर , मालिक लूट लाते हैं , कूट खाते हैं कर रहे हैं गुजर – बसर , मालिक चोट लगती है सीधे सीने पर टूटती है मगर कमर मालिक आ ही जाता है सबके चेहरे पर बीतती उम्र का असर , मालिक धूप […]

और पर्दे में हमारी जिंदगी ढलती रही/गज़ल/डॉ. भावना

इस जमीं से आसमां तक इक हवा चलती रही और पर्दे में हमारी जिंदगी ढलती रही ओढ़ कर रातों की चादर नींद में मंज़र रहे ख्वाब में तस्वीर उसकी आँख में पलती रही अजनबी हैं रास्ते उस धार की खातिर मगर क्यों नदी उस राह पर फिर रोज़ आ छलती रही चाँद – तारों – […]

गा रही कोयल मगन होकर/गज़ल/डॉ. भावना

बहुत नाजुक , बहुत कोमल है ये अहसास का मौसम चलो अब आ गया फिर से वो अम्मलतास का मौसम ये कैसा गीत है जो गा रही कोयल मगन होकर लगी छाने कशिश दिल में , कि है उल्लास का मौसम यूँ लगता है कि जैसे हँस रहा हो ये चमन , ये घर तेरे […]

बचपना मेरे हिस्से बचा रह गया/गज़ल/डॉ. भावना

लोग कहते जमीं पे ख़ुदा रह गया इश्क़ की शक्ल में वह बचा रह गया लाल – पीले – हरे रंग बिखरे रहे मन तो प्रेमिल रंगों में रंगा रह गया खत्म महफ़िल हुई , लोग घर को गए , फूल गमलों में तन्हा सजा रह गया वक्त के साथ होते गए सब बड़े बचपना […]

खनकते ही रहेंगे पास रहकर/गज़ल/डॉ. भावना

ज़रा – सी बात पर अनबन की आदत तुरत जाती नहीं बचपन की आदत भिगो देगी तुम्हें भी देखना तुम उमस – सी बन रही सावन की आदत चमक जायेगा अपना शह्र भी तब सुधर जायेगी जब जन – जन की आदत ये टीवी और मोबाइल की दुनिया बनी है आज हर आँगन की आदत […]

×