हमारी ये चटाई ही हमें कालीन लगती है/गज़ल/डॉ. भावना
किसी के ख़्वाब में वह इस क़दर तल्लीन लगती है नदी वह गाँव वाली आजकल ग़मगीन लगती है कभी महलों की रानी थी , कभी महफ़िल की थी रौनक ग़ज़ल निर्धन के कंधों पर ही अब आसीन लगती है भरोसा है जिन्हें अपनी कठिन – सी साधनाओं पर जुगाड़ों की कोई चर्चा उन्हें तौहीन लगती […]