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हमारी ये चटाई ही हमें कालीन लगती है/गज़ल/डॉ. भावना

किसी के ख़्वाब में वह इस क़दर तल्लीन लगती है नदी वह गाँव वाली आजकल ग़मगीन लगती है कभी महलों की रानी थी , कभी महफ़िल की थी रौनक ग़ज़ल निर्धन के कंधों पर ही अब आसीन लगती है भरोसा है जिन्हें अपनी कठिन – सी साधनाओं पर जुगाड़ों की कोई चर्चा उन्हें तौहीन लगती […]

उम्मीद पर पौधे लगाती है/गज़ल/डॉ. भावना

कभी हँसती , कभी रोती , कभी चुप्पी लगाती है ये औरत रोज़ छल – बल की लड़ाई हार जाती है बताओगे भला क्या तुम मरद की ज़ात जो ठहरे मुझे मालूम है दुनिया मुझे क्या – क्या बुलाती है उजालों के इशारे पर कई शक्लों में ढल – ढल कर मेरी परछाई मुझको ज़िन्दगी […]

प्रेम बूंदों में ढल के जब आये/गज़ल/डॉ. भावना

कुछ तो लब से कहा करे कोई मेरी खातिर दुआ करे कोई तोड़ कर पत्थरों के सीने को बन के दरिया बहा करे कोई दिल लगाया है चाँदनी से अगर , रात भर फिर जगा करे कोई प्रेम बूंदों में ढल के जब आये कितने दिन तक बचा करे कोई छोड़ कर चल दिया शहर […]

मुस्कान आजकल/गज़ल/डॉ. भावना

हर शय की है लगी हुई दुकान आजकल बिकती है टीवी शो में भी मुस्कान आजकल जो दिख रहा है वह कभी होता न दरअसल हँसते लबों में बंद है तूफान आजकल ये दोस्त कैसे हैं जिन्हें देखा न ही सुना दद्दा भी सुन के होते हैं हैरान आजकल अपने ही पुरखों से कभी जो […]

भवन शीशे का निर्मित कर लिया है/गज़ल/डॉ. भावना

भरोसे को ही खंडित कर लिया है सफर खुद ने ही बाधित कर लिया है भला कैसे दिखेगा दुख हमारा अगर चेहरा ही हर्षित कर लिया है भला ये है कोई सम्मान – सूची स्वयं का नाम अंकित कर लिया है जुबां खुलते ही मारे जायेंगे सब सभी का साक्ष्य चिन्हित कर लिया है मकां […]

हाथ में चिमटा लिये हुए/गज़ल/डॉ. भावना

बिछड़े हुए की याद का साया लिये हुए इक फ़िक्र में हैं लोग भरोसा लिये हुए आता रहा है ख्वाब में क्यों जाने रात – भर हामिद-सा कोई हाथ में चिमटा लिये हुए उम्मीद यह कि मान ही जायेगा एक दिन आया वो फिर – से गर्म लिफ़ाफ़ा लिये हुए कोई तो बच्चा लोभ से […]

आँख में उम्मीद थी पर रो रहे हैं हम/गज़ल/डॉ. भावना

ख्वाहिशों की भीड़ में जब खो रहे हैं हम जुगनुओं को हाथ में रख सो रहे हैं हम सोचकर यह रोटियों से भूख मिटती है अंतड़ियों में रोटियाँ ही बो रहे हैं हम हाथ में पुस्तक के बदले में थमा के शस्त्र देश की तक़दीर ही तो खो रहे हैं हम चार चूल्हे थे मगर […]

सोचता है धूप में/गज़ल/डॉ. भावना

देर तक माटी के संग सज़दा हुआ है धूप में खेतिहर से बीज तब बोया गया है धूप में जेठ की इस दोपहर में नींद क्यों आती नहीं वो परिंदा दर – ब – दर क्या खोजता है धूप में हाथ में रस्सी बंधी है और रूखे बाल हैं एक पागल बैठकर क्या सोचता है […]

मेरे घर में पीड़ा भी पटरानी है/गज़ल/डॉ. भावना

एक बड़ी मुस्कान लबों पर हो , तो हो टीस बला की दिल के अंदर हो , तो हो ढाई आखर पढ़ना था तो पढ़ डाला काला अक्षर भैंस बराबर हो , तो हो मैंने तो बस फूल दिये उसको हरदम हाथ में उसके कोई खंजर हो , तो हो बोल के सच ईमान बचाया […]

घर – घर आग लगाता फिरता है/गज़ल/डॉ. भावना

अपनी जीत के गीत ही गाता फिरता है संघर्षों से आँख लड़ाता फिरता है साँसों की लक्ष्मण – रेखा को लाँघा जब लम्हों का क्यों बोझ उठाता फिरता है अपने ग़म की चंद नई तस्वीरों को पलकों में वह रोज़ छुपाता फिरता है मुखिया का पद जीता पत्नी ने जबसे मुखिया पति ही राज चलाता […]

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