आदमी चाँद पर घर बनाने चला/गज़ल/अविनाश भारती
आस के शामियाने को ताने चला आदमी चाँद पर घर बनाने चला कैस, लैला से उल्फ़त निभाने चला जान अपनी भला क्यूँ गँवाने चला चेहरे पे जोकरों-सा मुखौटा लिए बाप मेरा खिलौना कमाने चला सच परेशान है पर पराजित नहीं बात झूठी है ये, मैं बताने चला छीन ‘अविनाश’ मुँह से निवाला मेरा ये ज़माना […]