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Day:

आदमी चाँद पर घर बनाने चला/गज़ल/अविनाश भारती

आस के शामियाने को ताने चला आदमी चाँद पर घर बनाने चला कैस, लैला से उल्फ़त निभाने चला जान अपनी भला क्यूँ गँवाने चला चेहरे पे जोकरों-सा मुखौटा लिए बाप मेरा खिलौना कमाने चला सच परेशान है पर पराजित नहीं बात झूठी है ये, मैं बताने चला छीन ‘अविनाश’ मुँह से निवाला मेरा ये ज़माना […]

कारवां को मरा का मरा रहने दो/गज़ल/अविनाश भारती

पेड़ की छाँव में बिस्तरा रहने दो इस तरह गाँव मुझमें मेरा रहने दो चाँद,तारे,फ़लक सब मुबारक़ तुम्हें मेरे हिस्से मेरी ये धरा रहने दो है ज़रूरी बहुत ये ग़ज़ल के लिये इसलिए ज़ख़्म मेरा हरा रहने दो चल सको तो अकेले चलो धूप में कारवां को मरा का मरा रहने दो आप ‘अविनाश’ मुझपे […]

मंच से गीत औरों का गाने से क्या/गज़ल/अविनाश भारती

मंच से गीत औरों का गाने से क्या ऐसे हों गर हुनर फिर दिखाने से क्या रूठ जाते हैं जो बात ही बात में ऐसे लोगों के भी रूठ जाने से क्या छत को देखा टपकते तो सहसा लगा नाम शोहरत ये इज़्ज़त कमाने से क्या शायरी ढाल है और तलवार भी डर भला मुझको […]

शौक़ से मत कहो पेट के वास्ते/गज़ल/अविनाश भारती

कौन आए इधर या उधर से यहाँ सुब्ह भी गर्म है दोपहर से यहाँ शौक़ से मत कहो पेट के वास्ते दूर हैं हम सभी अपने घर से यहाँ बाप से हैं खफ़ा घर के बेटे सभी दूर जैसे परिंदा शजर से यहाँ क्यों नहीं है दिखाता ख़बर ये कोई जो भी देखी है सबने […]

भूख से इक परिंदा तड़पता मिला/गज़ल/अविनाश भारती

इस वबा की घड़ी में सताने लगे मौत के क्यूं भला सब ठिकाने लगे भूख से इक परिंदा तड़पता मिला दिन पुराने हमें याद आने लगे घर के बच्चों को क्या हो गया दोस्तो आज सबको ये आँखें दिखाने लगे इस ज़हर का कहर देखिये तो जरा लोग ख़ुद को घरों में छुपाने लगे बैर […]

हमें और कितना यूँ जलना पड़ेगा/गज़ल/अविनाश भारती

घरों से सभी को निकलना पड़ेगा दरिंदो के फन को कुचलना पड़ेगा कठिन है डगर फिर भी चलना पड़ेगा नहीं तो हमें हाथ मलना पड़ेगा ज़माने से पहले ज़रूरी है खुद को बदलने से पहले बदलना पड़ेगा बता दो ऐ हाकिम! तेरे राज में भी हमें और कितना यूँ जलना पड़ेगा जुनूँ रक्खो ऐसा यूँ […]

अगरचे नाम ये अपने हमारा कुल बताते हैं/गज़ल/अविनाश भारती

नज़र जिनको मिली हमसे वही आँखें दिखाते हैं क़दम कैसे कहाँ रक्खें हमें बच्चे बताते हैं कहीं जो बैठ जाएं दोस्तों के साथ फुर्सत से हमें छुटपन के दिन अपने हँसाते-गुदगुदाते हैं जो सूखा और बरखा में सभी का पेट भरते हैं उधारी में वही हलधर चिता खुद की सजाते हैं हमारे नाम में महके […]

जिनके हिस्से नहीं रोटियाँ आज भी/गज़ल/अविनाश भारती

चलती है साथ में बेड़ियाँ आज भी पुत्र-सी क्यों नहीं बेटियाँ आज भी कौन लेगा भला कोई उनकी ख़बर जिनके हिस्से नहीं रोटियाँ आज भी रौशनी के लिए हर किसी को यहाँ हैं मयस्सर कहाँ खिड़कियाँ आज भी राजतंत्र अब नहीं तंत्र है लोक का फिर भी दास और हैं दासियाँ आज भी मेरी ग़ज़लों […]

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