जमाने को कलंकित कर गया हूं/गज़ल/आचार्य फज़लुर रहमान हाशमी
जमाने को कलंकित कर गया हूं मिला भाई तो उससे डर गया हूं नहीं अनुभूति है जीवंत मेरी मुझे लगता है जैसे मर गया हूं कहीं कुछ बच गया तो थोड़ा अमृत यही तो ढूंढने सागर गया हूं बुलंदी की बहुत चाहत थी खुद को मगर पाताल के अंदर गया हूं रहा गंतव्य से रिश्ता […]