शाम ढलते ही तेरी याद जो घर आती है
एक ख़ामोशी मेरे दिल में उतर आती है
ज़िंदगी कब किसे मिलती है मुकम्मल यारो
कुछ न कुछ इसमें कमी सबको नज़र आती है
आँसुओं का ये समंदर है उमड़ पड़ता, जब
तेरी यादों की वो तूफ़ानी लहर आती है
टूट जाती हूँ कभी तो कभी जुड़ जाती हूँ
ज़िन्दगी लाख झमेले लिये जब घर आती है
आईने पर है पड़ी धूल ज़माने-भर की
अपनी सूरत भी कहाँ साफ़ नज़र आती है
सच्चे दिल से तुम्हें आवाज़ दे कर है जाना
इक सदा सच में तेरे दर से इधर आती है
झूम उठते हैं ख़ुशी से धरा के पेड़ सभी
बदलियों की जो उन्हें नभ से ख़बर आती है
लेखक
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डॉ. कविता विकास ( लेखिका व शिक्षाविद्) प्रकाशन - दो कविता संग्रह (लक्ष्य और कहीं कुछ रिक्त है )प्रकाशित। एक निबंध संग्रह (सुविधा में दुविधा),एक ग़ज़ल संग्रह (बिखरे हुए पर) प्रकाशित। अनेक साझा कविता संग्रह और साझा ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित। । (परवाज़ ए ग़ज़ल, १०१ महिला ग़ज़लकार,हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज,२०२० की नुमाइंदा ग़ज़लें, इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवीं साल की बेहतरीन ग़ज़लें, इस दौर की ग़ज़लें - १, आधी आबादी की ग़ज़लें, ग़ज़ल त्रयोदश ) प्रकाशित। हंस,परिकथा,पाखी,वागर्थ,गगनांचल,आजकल,मधुमती,हरिगंधा,कथाक्रम,साहित्य अमृत,अक्षर पर्व और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं व लघु पत्रिकाओं में कविताएँ ,कहानियाँ ,लेख और विचार निरंतर प्रकाशित । दैनिक समाचार पत्र - पत्रिकाओं और ई -पत्रिकाओं में नियमित लेखन । राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित। झारखंड विमर्श पत्रिका की सम्पादिका और अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक के लिए अतिथि संपादन । संपर्क - फ़्लैट नम्बर -टी/1801, सेक्टर - 121, होम्स - 121,नॉएडा, पिन-201301, उत्तर प्रदेश ई मेल – kavitavikas28@gmail.com मोबाइल - 9431320288
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