दिल जमा रहे; महफ़िल जमी रहे
संघर्ष घनघोर हो मंजिल जमी रहे
दौलत-शोहरत उसके हिस्से में है बहुत
ख़ुदा करे न नजर ए क़ातिल जमी रहे
लड़ने के लिए मैं भी बेताब हूँ कहो
है अगर दम तो मुश्किल जमी रहे
लोग चढ़ें बेशक हेलिकॉप्टर मगर
पसंदीदा में अपने साइकिल जमी रहे
हर आस्तिक के दिल में आस्था के वास्ते
गीता, क़ुरान और बाइबिल जमी रहे
नि:स्वार्थपूर्ण सदा परहित में अपनी
बुद्धि जमी रहे; अक्किल जमी रहे
साहित्य में तुम्हारा सदियों तलक नरेन्द्र
खूँटा जमा रहे यूं ही कील जमी रहे ।।
लेखक
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नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' **शिक्षा-- स्नातक,बी.एड *मोबाइल नंबर--8303216841 **जन्मतिथि--27-03-2001 *जन्मभूमि--करछना,प्रयागराज(उत्तर प्रदेश) **कर्मभूमि--प्रयागराज(उत्तर प्रदेश) *शौक--कविता लिखना,पढ़ना और पढ़ाना,तर्क-वितर्क व शोध-विमर्श। **अपने बारे में चंद शब्द-- *आंबेडकरवादी विचारधारा से प्रभावित। दलित,स्त्री व प्रकृति विषयक मुद्दों पर बेबाक लेखन-प्रयत्न। **लेखन विधा-- *कविता,कहानी,दोहा,हाइकु ग़ज़ल,माहिया,शायरी,नाटक,उपन्यास,आत्मकथा इत्यादि। **सम्मान-- नवांकुर साहित्य मंच सीतापुर द्वारा *महर्षि वाल्मीकि सम्मान, काव्य कुमुद,कल्प कथा व राष्ट्रीय अभिनव साहित्य मंच प्रयागराज इत्यादि द्वारा दशाधिक बार प्रशस्ति पत्र व सम्मान प्राप्त। **रचना-प्रकाशन-- *अमर उजाला काव्य पटल पर 350 से अधिक,जयदीप पत्रिका में 20 से अधिक,मानस पत्रिका व आइडिया सिटी न्यूज़ बनारस से दशाधिक,प्रस्फुटन पाक्षिक ई-पत्रिका,साहित्य रचना ई-पत्रिका,साहित्य कुञ्ज पत्रिका(कनाडा),ज़ख़ीरा डाट कॉम,हिंदी बोल INDIA व हम हिन्दुस्तानी USA से रचनाएं प्रकाशित।
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