बिल्कुल ही एक मजदूर की तरह
जब खुद को जोड़ा हूं
झिंझोड़ा हूं
दिन रात
आंखों को फोड़ा हूं
निचोड़ा हूं
तब जाकर कहीं कुछ पंक्तियां लिख पाया हूं
जिसे तुम कविता कहते हो
दरअसल यह कविता नही
मेरी आंखों का छिना हुआ सुकून है
परिश्रम है; पसीना है; खून है
लेखक
-
नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' **शिक्षा-- स्नातक,बी.एड *मोबाइल नंबर--8303216841 **जन्मतिथि--27-03-2001 *जन्मभूमि--करछना,प्रयागराज(उत्तर प्रदेश) **कर्मभूमि--प्रयागराज(उत्तर प्रदेश) *शौक--कविता लिखना,पढ़ना और पढ़ाना,तर्क-वितर्क व शोध-विमर्श। **अपने बारे में चंद शब्द-- *आंबेडकरवादी विचारधारा से प्रभावित। दलित,स्त्री व प्रकृति विषयक मुद्दों पर बेबाक लेखन-प्रयत्न। **लेखन विधा-- *कविता,कहानी,दोहा,हाइकु ग़ज़ल,माहिया,शायरी,नाटक,उपन्यास,आत्मकथा इत्यादि। **सम्मान-- नवांकुर साहित्य मंच सीतापुर द्वारा *महर्षि वाल्मीकि सम्मान, काव्य कुमुद,कल्प कथा व राष्ट्रीय अभिनव साहित्य मंच प्रयागराज इत्यादि द्वारा दशाधिक बार प्रशस्ति पत्र व सम्मान प्राप्त। **रचना-प्रकाशन-- *अमर उजाला काव्य पटल पर 350 से अधिक,जयदीप पत्रिका में 20 से अधिक,मानस पत्रिका व आइडिया सिटी न्यूज़ बनारस से दशाधिक,प्रस्फुटन पाक्षिक ई-पत्रिका,साहित्य रचना ई-पत्रिका,साहित्य कुञ्ज पत्रिका(कनाडा),ज़ख़ीरा डाट कॉम,हिंदी बोल INDIA व हम हिन्दुस्तानी USA से रचनाएं प्रकाशित।
View all posts