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सोन के पहाड़ियों का सन्नाटा/प्रवीण वशिष्ठ

जब मैं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का गला पकड़कर उसे दीवाल से सटाया तब मुझे पारितोषिक सजा के रूप में सोन के पहाड़ियों का बनवास दिया गया। मेरा तबादला ब्लॉक म्योरपुर जिला सोनभद्र के डुमरांव गांव में किया गया। यह समाचार जब मेरे घर में पता चली तब बाबूजी खुश हुए और मुझे नौकरी छोड़ने […]

जिसे तुम कविता कहते हो/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

बिल्कुल ही एक मजदूर की तरह जब खुद को जोड़ा हूं झिंझोड़ा हूं दिन रात आंखों को फोड़ा हूं निचोड़ा हूं तब जाकर कहीं कुछ पंक्तियां लिख पाया हूं जिसे तुम कविता कहते हो दरअसल यह कविता नही मेरी आंखों का छिना हुआ सुकून है परिश्रम है; पसीना है; खून है

भूख/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

भूख पीड़ा है; तड़प है; चाह है भूख क्रिया है; संवेग है; आह है भूख लालच है; लोभ है; आग है भूख गिद्ध है; भेड़िया है; नाग है भूख रोटी है; कपड़ा है; मकान है भूख श्रध्दा है; व्रत है; अनुष्ठान है भूख इज्जत है; शोहरत है; शान है भूख शर्त है; सवाल है; विधान […]

बिटिया टीईटी पास है/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

रामू! रामू हाँ बाबू मेहमान आयें हैं मेहमान अच्छऽ बाबू! कहते हुए साथ में कुछ कुर्सियाँ और बिछौना लिए रामू आता है करते हुए मेहमानों का अभिवादन लगाता है कुर्सियाँ और बिछौना बोलता है मेहमानों को बैठने के लिए मेहमान बैठते हैं रामू अंदर जाता है लाता है पानी से भरी गिलासें प्लेट में खोये […]

मैं दाल नही गलने दूंगा/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

बहुत हो गया शोषण जुल्म अब और नही छलने दूंगा आदमखोर उचक्कों की मैं दाल नही गलने दूंगा। मनमाना मनमौज किसी का रूआब नहीं चलने दूंगा किसी गरीब को ठगने का कोई ख्वाब नहीं पलने दूंगा सौगंध मुझे हे भारत मां अन्याय नहीं होनेदूंगा आदमखोर उचक्कों की मैं दाल नही गलने दूंगा। बदल रहे जो […]

मानव नहीं दरिंदे हैं हम/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

मानव नहीं दरिंदे हैं हम, मनबढ़ मस्त परिंदे हैं हम, प्यास हमारी जिस्मानी है, हैवानी पर जिंदे हैं हम। मानव नहीं दरिंदे हैं हम। मनबढ़ मस्त परिंदे हैं हम।। कहने को बस अपनापन है, कत्लेआम रे वहशीपन है, रोज-रोज का पेशा अपना, कहने को शर्मिन्दे हैं हम। मानव नहीं दरिंदे हैं हम। मनबढ़ मस्त परिंदे […]

गुरूर ख़ाक हो जाएगा/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

गुरूर ख़ाक हो जाएगा मग़रूर ख़ाक हो जाएगा अपने पाप-कर्मों से ही असुर ख़ाक हो जाएगा खाया एक गच्चा जो तो सुरूर ख़ाक हो जाएगा फुला ग़र जो गुब्बारे-सा ससुर ख़ाक हो जाएगा ख़ुद-ब-ख़ुद आताताई हुज़ूर ख़ाक हो जाएगा अडिग रहना सच्चाई पे क़सूर ख़ाक हो जाएगा ख़ालिस प्रेम-मरहम से नासूर ख़ाक हो जाएगा सोनकर […]

नदी-नाला-नार देखिए/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

नदी-नाला-नार देखिए। कूड़े का अंबार देखिए।। कूड़े में कीड़ो-सा बझा, खंडहर परिवार देखिए। भूखे-प्यासे पेट के मारे, बच्चे को लाचार देखिए। कस्बा-कस्बा गली-गली, गज्जर है सरकार देखिए। बज-बज बिजबिजाते हुए, गड़हे बद-बू-दार देखिए। भारत की तस्वीर असल, सच्चाई का सार देखिए। प्रकृति के प्रतिकूल नरेन्द्र, इंसा का व्यवहार देखिए।

संकट – ग्रस्त को उबार देगा/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

संकट – ग्रस्त को उबार देगा, अन्यायियों को सुधार देगा। पड़ी जरूरत अगर देश को, हर एक हाथ में कुठार देगा। स्वर बुलंद कर इंकलाब का, ललकार देगा ; पुकार देगा। ऑंख दिखाने वालों का तो, धड़ से गरदन उतार देगा। राष्ट्र-विरोधी हरेक ताकतों को, उन्ही के भाषा में दुत्कार देगा। समझा शोषकों को उनकी […]

दिल जमा रहे; महफ़िल जमी रहे/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

दिल जमा रहे; महफ़िल जमी रहे संघर्ष घनघोर हो मंजिल जमी रहे दौलत-शोहरत उसके हिस्से में है बहुत ख़ुदा करे न नजर ए क़ातिल जमी रहे लड़ने के लिए मैं भी बेताब हूँ कहो है अगर दम तो मुश्किल जमी रहे लोग चढ़ें बेशक हेलिकॉप्टर मगर पसंदीदा में अपने साइकिल जमी रहे हर आस्तिक के […]

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