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कुण्डलियां/डॉ. बिपिन पाण्डेय

होता है वह ही बड़ा , दुनिया में इंसान।
बैठ साथ जिसके नहीं ,लघुता का हो भान।
लघुता का हो भान,बड़ा जब खुद को माने।
निज संपत्ति सामर्थ्य ,सदा सर्वोच्च बखाने।
होता है वह तुच्छ ,लगाता दुख में गोता।
करता नहीं बखान ,बड़ा जो सच में होता।।1

होती हमको खोजनी , दुष्ट जनों की काट।
खटमल के डर से नहीं, छोड़ी जाती खाट।
छोड़ी जाती खाट, धूप में खटमल वाली।
बिना सज़ा श्रीमान, सुधरते नहीं मवाली।
त्याग, युद्ध मैदान, करें जो लीपा-पोती ।
जग में जय-जयकार, नहीं ऐसो की होती।।2

होती है अभिव्यक्ति की,क्षमता जिसके पास।
जीवन में इंसान वह, जीता बनकर खास।
जीता बनकर खास, प्रतिष्ठा जग में पाता।
रखकर उच्चादर्श, सभी को राह दिखाता।
बाँटे सबको नित्य ,ज्ञान के सुंदर मोती।
रखे सौम्य व्यवहार ,उसी से इज्जत होती।।3

होते हैं मुश्किल बहुत ,जीवन के किरदार।
जो रिश्तों को जोड़ता,वह बिखरे हर बार।
वह बिखरे हर बार ,करे जो दुनियादारी।
रहे हमेशा त्रस्त ,चुकाए कीमत भारी।
करें निर्वहन धर्म ,बीज खुशियों के बोते।
धरती पर इंसान, बहुत कम ऐसे होते।।4

आँसू लाता आँख में ,सोचो नहीं अतीत।
करता सदा भविष्य है,सबको ही भयभीत।
सबको ही भयभीत,नहीं यदि रहना प्यारे।
सुघड़ बनाएँ आज, खुशी आएगी द्वारे।
वर्तमान की बात , हमेशा रहती धाँसू।
सब होते खुशहाल, नहीं आते हैं आँसू।।5

आए हैं जबसे शहर ,छोड़ गाँव परिवार।
उजड़ा उजड़ा लग रहा,रिश्तों का संसार।
रिश्तों का संसार , जरूरी इसे सजाएँ।
दें बच्चों को सीख, महत्ता उन्हें बताएँ।
चका-चौंध में फँसे , घूमते हैं बौराए।
अपनेपन से दूर ,शहर हम जबसे आए।।6

आओ मिलकर हम करें,धरती का सिंगार।
बरगद, पीपल, नीम के ,पौधे रोपें चार।।
पौधे रोपें चार ,चतुर्दिक हरा बनाएँ।
काम करें यह नेक, तड़पती धरा बचाएँ।
प्रकृति जीव आधार,प्रेम से इसे सजाओ।
हवा हवाई बात ,छोड़ सब सँग में आओ।।7

करता जो माँ-बाप को,उठकर सुबह प्रणाम।
उनके आशीर्वाद से ,बनते उसके काम।
बनते उसके काम , दूर हर रहे बुराई।
सीधी-सच्ची बात ,सभी ये सुन लो भाई।
दे जो सबको मान,किसी को नहीं अखरता।
उस बच्चे को प्यार, सदा हर कोई करता।।8

चलता रहता आदमी,हरदम ऐसी चाल।
मानो उसने कर लिया,बस में अपने काल।
बस में अपने काल ,नहीं कोई कर पाया।
नहीं सर्वदा साथ,किसी का देती काया।
भूल चिरंतन सत्य,स्वयं को रहता छलता।
उल्टी-टेढ़ी चाल ,सदा मानव है चलता।।9

चिंता छोड़ो जगत की,सुनो न व्यर्थ प्रलाप।
प्रेम डगर पर साथिया , बढ़े चलो चुपचाप।
बढ़े चलो चुपचाप , अगर है मंजिल पानी।
सुन लोगों की राय ,करो मत आनाकानी।
खुद पर करो यकीन,और फिर हिम्मत जोड़ो।
करते रहो प्रयास , व्यर्थ की चिंता छोड़ो।।10

जलती बाती दीप की,करती तम का नाश।
सदा त्याग की सीख दे ,उर में भरे प्रकाश।
उर में भरे प्रकाश,सत्य तब सम्मुख आए।
करना सबका लाभ,ज्ञान का पाठ पढ़ाए।
जीवन है वह धन्य,मनुजता जिसमें पलती।
काया है बेकार,एक दिन सबकी जलती।।11

जीवन भर करता रहा,जो दुनिया पर शोध।
हुआ न अंतिम सांस तक,उसको अपना बोध।
उसको अपना बोध ,सरलता से हो जाता।
रह घमंड से दूर ,रखे जो सबसे नाता।
सबमें प्रभु का अंश, बताता यह ही दर्शन।
करो सभी से प्यार,जियो फिर सच्चा जीवन।।12

जो करते हैं कोशिशें ,नहीं मानते हार।
उनको मिलता जीत का ,सुंदर-सा उपहार।।
सुंदर- सा उपहार , वही हैं जग में पाते।
जो रखते हैं धैर्य, मार्ग निज स्वयं बनाते।
जिनके उर उत्साह ,नहीं मुश्किल से डरते।
मिलता उनको लक्ष्य,सदा कोशिश जो करते।।13

ज्ञानी अपने ज्ञान का , करता नहीं प्रचार।
परिलक्षित हो देख वह,सदा व्यक्ति व्यवहार।
सदा व्यक्ति व्यवहार,सुयश अपयश दिलवाए।
निश्चित करे भविष्य ,सुगम हर राह बनाए।
प्राप्त किया जो ज्ञान, बनाए यदि अभिमानी।
कहते सारे लोग , नहीं वह होता ज्ञानी।।14

झटके में जो खोल दे,दिल के बंद गवाक्ष।
माना जाता है सदा ,उत्तम वही कटाक्ष।
उत्तम वही कटाक्ष,वार नित करे करारा।
और निकाले मैल ,व्यवस्था में जो सारा।
लाए मुख पर हास्य,फोड़ दे गम के मटके।
जब हो व्यंग्य सटीक,लगें विद्युत से झटके।।15

तन का धोना व्यर्थ है ,दूर करो मन मैल।
परिवर्तन होगा तभी ,टूटे दुख की शैल।
टूटे दुख की शैल ,बहे खुशियों का निर्झर।
आते हैं प्रभु पास ,ज़िंदगी जिन पर निर्भर।
समझ न पाते सत्य,यही रोना सब जन का।
करते हैं पाखंड ,मिटाते मैल न मन का।।16

दाता सबको दीजिए,कुछ ऐसा किरदार।
देशप्रेम दिल में रहे ,बने सुखद व्यवहार।
बने सुखद व्यहार ,नहीं हो कर्कश बोली।
खुशियाँ आएँ द्वार,बनाकर सुभग रंगोली।
हर कोई कर्त्तव्य ,देश-हित रहे निभाता।
जीवन में उत्कर्ष, सभी को देना दाता।।17

दिखता सदा पयोधि में ,अतुल वारि भंडार।
पर नदियों से वह इसे, लेता नित्य उधार।
लेता नित्य उधार , बात जग जाने सारा।
आती है उपलब्धि ,मिले जब हमें सहारा।
पाकर सबका साथ,भाग्य हर कोई लिखता।
भले हमें अवदान ,नहीं औरों का दिखता।।18

दाता सबको दीजिए,कुछ ऐसा किरदार।
देशप्रेम दिल में रहे ,बने सुखद व्यवहार।
बने सुखद व्यहार ,नहीं हो कर्कश बोली।
खुशियाँ आएँ द्वार,बनाकर सुभग रंगोली।
हर कोई कर्त्तव्य ,देश-हित रहे निभाता।
जीवन में उत्कर्ष, सभी को देना दाता।।19

पूरा उसको कीजिए, काम लिया जो हाथ।
पता नहीं कल काल ये ,कितना देगा साथ।
कितना देगा साथ ,कौन ये रब ही जाने।
क्या स्थिति हो उत्पन्न,रार जो हर-पल ठाने।
कल पर छोड़ा काम , हमेशा रहे अधूरा।
जिसको करते आज ,वही होता है पूरा।।20

पूरी होती है नहीं ,जीवन की हर साध।
जग का शाश्वत सत्य ये,रहता है निर्बाध।
रहता है निर्बाध ,काल ये कहते ज्ञानी।
जो करता संघर्ष,लिखे बस वही कहानी।
चलो वक्त के साथ,कभी मत रखना दूरी।
जो भी हो परिणाम,लगा दो ताकत पूरी।।21

बनकर मत रहना कभी,कोई सूखी डाल।
जीवन में नमनीयता,करती बड़ा कमाल।।
करती बड़ा कमाल ,राय सब यह ही देते।
विनयी शांत स्वभाव ,लोग जो बनें चहेते।
टूटे वह ही पेड़ ,खड़ा जो होता तनकर।
सदा उठाते हानि ,लोग हठधर्मी बनकर।।22

बोना नहीं बबूल यदि,चाह रहे हो आम।
हो जाओगे व्यर्थ में ,दुनिया में बदनाम।।
दुनिया में बदनाम,बुरा बद तो अच्छा है।
यही पुरातन मंत्र ,मात्र सीधा- सच्चा है।
करता उल्टे काम ,यही है जग का रोना।
पर लोगों की राह,कभी मत कंटक बोना।।23

मिलकर रहना सीख लो,उचित नहीं है बैर।
सब अपने भाई-बहन, सुनो न कोई गैर।
सुनो न कोई गैर ,सभी को अपना मानो।
नहीं किसी से रार, भूलकर भैया ठानो।
सब हैं एक समान,सभी का यह है कहना।
हमको सबके साथ, हमेशा मिलकर रहना।।24

रखते हैं जो हौसला ,अपना सदा बुलंद।
मिलता है केवल उन्हें ,जीवन का आनंद।
जीवन का आनंद,आलसी कभी न पाएँ।
जो होते डरपोक , बहाने बैठ बनाएँ।
लक्ष्य प्राप्ति का स्वाद,वही मानव हैं चखते।
साहस धीरज पास ,हमेशा जो हैं रखते।।25

लेखक

  • डाॅ. बिपिन पाण्डेय

    डाॅ. बिपिन पाण्डेय जन्म तिथि: 31/08/1967 पिता का नाम: जगन्नाथ प्रसाद पाण्डेय माता का नाम: कृष्णादेवी पाण्डेय शिक्षा: एम ए, एल टी, पी-एच डी ( हिंदी) स्थाई पता : ग्राम - रघुनाथपुर ( ऐनी) पो - ब्रह्मावली ( औरंगाबाद) जनपद- सीतापुर ( उ प्र ) 261403 रचनाएँ (संपादित): दोहा संगम (दोहा संकलन), तुहिन कण (दोहा संकलन), समकालीन कुंडलिया ( कुंडलिया संकलन) मौलिक- स्वांतः सुखाय (दोहा संग्रह),शब्दों का अनुनाद ( कुंडलिया संग्रह) ,अनुबंधों की नाव ( गीतिका संग्रह), अंतस् में रस घोले ( कहमुकरी संग्रह) साझा संकलन- कुंडलिनी लोक, करो रक्त का दान, दोहों के सौ रंग, भाग-2,समकालीन मुकरियाँ ,ओ पिता!, हलधर के हालात, उर्वी, विवेकामृत-2023,उंगली कंधा बाजू गोदी, आधुनिक मुकरियाँ और अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। पुरस्कार: दोहा शिरोमणि सम्मान ,मुक्तक शिरोमणि सम्मान,कुंडलिनी रत्न सम्मान,काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान, साहित्यदीप वाचस्पति सम्मान,लघुकथा रत्न सम्मान ,आचार्य वामन सम्मान आदि वर्तमान पता : केंद्रीय विद्यालय क्रमांक-2, रुड़की, हरिद्वार ( उत्तराखंड) 247667 चलभाष : 9412956529

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