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Year: 2023

वक्त/दया शर्मा

वक्त  जो बीत  जाता है वापस वो आता नहीं । इन्तजार करते हम वक्त  का, वक्त  करता हमारा नहीं। आज अगर समय मेरा  है तो कल तुम्हारा होगा अगर ये मेहरबां है तुम पर तो रोशन तेरा सितारा होगा। वक्त  को कौन जान पाया है कौन इसे बाँध पाया है। इसने कभी राजा को रंक […]

हिन्दी/दया शर्मा

हिन्दी हिन्दुस्तान की रानी है ये बात  हम सबने  मानी है। ये किसी एक जाति की भाषा  नहीं  न ही  इसका  कोई  शानी है हिन्दी जन जन की भाषा  कहलाती फिर  क्यों न ये राष्ट्रभाषा  बन पाती । आज विश्व में भी ये परचम फहराती भारत देश  का गौरव  बढाती। हिन्दी वैज्ञानिक  भाषा कहलाती जैसा […]

नेमते ज़िस्त/दया शर्मा

गुजर रही थी बेसबब ज़िस्त ये हमारी पाया जो तुम्हें , जीने का तब शऊर आया । बिन तुम्हारे ज़िन्दगी  में  कोई नूर न था। मिले जो तुम खुद को गमों से दूर पाया । बदगुमानियों  का दौर था सामने हमारे तेरे रफ़ाक़त से न खुद को मज़बूर पाया। महफ़िलों की रौनक में डसती तन्हाई […]

दोहा/तारकेश्वरी ‘सुधि’

पेड़ भगाएँ आपदा , भूख , गरीबी , रोग । देते  हैं  ताज़ी  हवा ,  काया  रखें  निरोग॥1 पेट भरा हो तन ढका, हर मुख पर मुस्कान। करो  दुआ  अपना  बने, ऐसा  देश  महान।।2 पेड़ हवा में हो रही , कब  से  लम्बी  बात । पावस में निकले सभी , छुपे हुए जज़्बात ।।3 बना  […]

कुरूक्षेत्र सर्ग-1-7/रामधारी सिंह दिनकर

वह कौन रोता है वहाँ-इतिहास के अध्याय पर,जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल हैप्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का;जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है;जो आप तो लड़ता नहीं,कटवा किशोरों को मगर,आश्वस्त होकर सोचता,शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की ? और तब सम्मान से जाते गिनेनाम […]

बालकाण्ड:रामचरितमानस/तुलसीदास

॥श्री गणेशाय नमः ॥ श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्री रामचरित मानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड) श्लोक वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥ भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥ वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्। यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥ सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ। वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ॥4॥ उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्। सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥5॥ यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा यत्सत्वादमृषैव भाति […]

अयोध्याकाण्ड:रामचरितमानस/तुलसीदास

श्रीगणेशायनमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस द्वितीय सोपान अयोध्या-काण्ड श्लोक यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्। सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्॥1॥ प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः। मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा॥2॥ नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्। पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥3॥ दो0-श्रीगुरु चरन सरोज […]

अरण्यकाण्ड:रामचरितमानस/तुलसीदास

श्री गणेशाय नमः श्री जानकीवल्लभो विजयते श्री रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्यकाण्ड) श्लोक मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्। मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्॥१॥ सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम् राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे॥२॥ सोरठा– -उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति। पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न […]

किष्किन्धाकाण्ड:रामचरितमानस/तुलसीदास

श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस चतुर्थ सोपान ( किष्किन्धाकाण्ड) श्लोक कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ। मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौं हितौ सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः॥१॥ ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा। संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनं धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्॥२॥ सो0-मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर। जहँ बस संभु भवानि सो कासी […]

सुन्दरकाण्ड:रामचरितमानस/तुलसीदास

श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड श्लोक शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्॥1॥ नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥ जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत […]